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Tuesday, 29 January 2019

थोडा मुस्कुरा लीजिये

January 29, 2019 0
थोडा मुस्कुरा लीजिये
थोडा मुस्कुरा लीजिये



दो भाई थे। एक की उम्र 8 साल दूसरे की 10 साल। दोनों बड़े ही शरारती थे। उनकी शैतानियों से पूरा मोहल्ला तंग आया हुआ था। माता-पिता रातदिन इसी चिन्ता में डूबे रहते कि आज पता नहीं वे दोनों क्या करें।

एक दिन गांव में एक साधु आया। लोगों का कहना था कि बड़े ही पहुंचे हुये महात्मा है। जिसको आशीर्वाद दे दें उसका कल्याण हो जाये। पड़ोसन ने बच्चों की मां को सलाह दी कि तुम अपने बच्चों को इन साधु के पास ले जाओ। शायद उनके आशीर्वाद से उनकी बुध्दि कुछ ठीक हो जाये। मां को पड़ोसन की बात ठीक लगी। पड़ोसन ने यह भी कहा कि दोनों को एक साथ मत ले जाना नहीं तो क्या पता दोनों मिलकर वहीं कुछ शरारत कर दें और साधु नाराज हो जाये।

अगले ही दिन मां छोटे बच्चे को लेकर साधु के पास पहुंची। साधु ने बच्चे को अपने सामने बैठा लिया और मां से बाहर जाकर इंतजार करने को कहा ।

साधु ने बच्चे से पूछा – ”बेटे, तुम भगवान को जानते हो न ? बताओ, भगवान कहां है ?”

बच्चा कुछ नहीं बोला बस मुंह बाए साधु की ओर देखता रहा। साधु ने फिर अपना प्रश्न दोहराया । पर बच्चा फिर भी कुछ नहीं बोला। अब साधु को कुछ चिढ़ सी आई। उसने थोड़ी नाराजगी प्रकट करते हुये कहा – ”मैं क्या पूछ रहा हूं तुम्हें सुनाई नहीं देता । जवाब दो, भगवान कहां है ?

” बच्चे ने कोई जवाब नहीं दिया बस मुंह बाए साधु की ओर हैरानी भरी नजरों से देखता रहा।

अचानक जैसे बच्चे की चेतना लौटी। वह उठा और तेजी से बाहर की ओर भागा। साधु ने आवाज दी पर वह रूका नहीं सीधा घर जाकर अपने कमरे में पलंग के नीचे छुप गया। बड़ा भाई, जो घर पर ही था, ने उसे छुपते हुये देखा तो पूछा – ”क्या हुआ ? छुप क्यों रहे हो ?”

”भैया, तुम भी जल्दी से कहीं छुप जाओ।” बच्चे ने घबराये हुये स्वर में कहा।

”पर हुआ क्या ?” बड़े भाई ने भी पलंग के नीचे घुसने की कोशिश करते हुये पूछा।

”अबकी बार हम बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गये हैं। भगवान कहीं गुम हो गया है और लोग समझ रहे हैं कि इसमें हमारा हाथ है!

एक अदद घोटाला

January 29, 2019 0
एक अदद घोटाला
एक अदद घोटाला



सदा की भाँति श्रीमती जी ने चाय का कप और अख़बार एक साथ थमाया। फिर, ख़ुद पास आकर बैठ गईं। चाय को मेज़ पर रख, मैंने अखबार को खोला। मुख्यपृष्ठ पर प्रकाशित एक ख़बर को पढ़कर चित्त उदास हो गया। दीर्घ निश्वास छोड़ी मैंने।

पत्नी ने शंकित स्वर में पूछा, ‘‘क्या हुआ ? तबीयत तो ठीक है ?’’

मैंने उस सचित्र समाचार की ओर संकेत किया। पत्नी ने ख़बर की तरफ़ ध्यान नहीं देकर उसके साथ छपे चित्र को घूरा और बोली, ‘‘हाय...क्या हैंडसम पर्सनैल्टी है ? कैसा मुस्करा रहा है ? लेकिन इसे देख आप उदास क्यों हुए ?’’

मैं बोला, ‘‘इस आदमी पर अरबों रुपए के घोटाले का आरोप है।’’

‘‘तो क्या हुआ ? वह रुपया आपका तो नहीं है ! अरे, इतने उदास तो आप दंगों और दुर्घटनाओं के समाचारों को पढ़कर भी नहीं होते।’’

‘‘मैंडम ! मीडिया घोटालेबाज़ों को बड़ा उछाल रहा है। शेष समाचार घोटालों की ख़बरों के नीचे हैं। छोटे सो छोटा घोटाला भी ख़ासी सुर्ख़ियों में प्रकाशित होता है। राई का पहाड़ बन जाता है। बस, इसी बात से मेरा मन रोता है। नैतिक समाचारों को नीचा दर्जा और अनैतिक को ऊँचा। सोच रहा हूँ कि एक घोटाला मैं भी कर दूँ।’’

‘‘दैया रे...!’’ पत्नी बोली, ‘‘नौकरीपेशा होकर कैसी बात कर रहे हैं आप ? ऐसा सोचना भी पाप है। आप फँस गए तो हम कहीं के नहीं रहेंगे।’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा। हाँ, पूछताछ और गिरफ़्तारी जैसी कुछेक प्रक्रियाओं से अवश्य गुज़रना होगा। लेकिन, हमारे क़ानून में बच निकलने की अनेक गलियाँ हैं। तभी तो घोटालेबाज़ों का बाल भी बाँका नहीं हो पाता है। प्रसिद्धि पाने का इससे आसान उपाय कोई और नहीं। एक अदद घोटाला कर दो। फिर मीडिया में सनसनीखेज़ सुर्खियाँ होंगी। हो सकता है कि कोई अखबार संपादकीय भी लिख मारे। कदाचित् कभी प्रतियोगी परीक्षाओं के सामान्य ज्ञान के पर्चे में अपना नाम भी जुड़ जाए। विधानसभा या लोकसभा में हंगामें मच जाएँ। घोटालेबाज़ की पाँचों अंगुलियाँ घी में हुआ करती हैं, मैडम !’’

इससे पहले पत्नी कुछ कहतीं, मित्र ठेपीलाल नमूदार हुए। मैं उमंगपूर्वक बोला, ‘‘आओ भई, आओ; बड़े मौक़े पर तशरीफ़ लाए हो।’’

‘‘आज भाभी से बड़ी घुट-घुटकर बातें हो रही हैं। मैं दो मिनट से खड़ा हूँ और आप लोगों को मेरे आने के आभास तक नहीं है।’’ ठेपीलाल सोफ़े पर पसरते हुए बोले।

मैंने कहा, ‘‘ठेपी भाई, कई दिन से एक कीड़ा मेरे दिमाग़ में कुलबुला रहा है। घोटालों के इस दौर में, क्यों न एक घोटाला मैं भी कर डालूँ ?’’ मैंने अखबार ठेपी की ओर ठेलते हुए कहा, ‘‘यह देखो, इस घोटालेबाज़ की ख़बर कैसी प्रमुखता से प्रकाशित हुई है ?’’

ठेपी ने एक उड़ती निगाह समाचार-पत्र पर डाली और बोले, ‘‘इसके बारे में कल रात इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विस्तार से ख़बर दे चुका है। बहरहाल, पहली दफ़ा तुमने अकलमंदों जैसी बात की है। मैं तो कब से कह रहा था कि नाम कमाना है तो यह लेखन-वेखन का चक्कर छोड़ो और अपनी प्रतिभा को किसी दूसरी दिशा में लगाओ। साहित्य में कैसा भी बड़ा काम कर गुज़रोगे तो दो-चार पंक्तियों का समाचार छपेगा। गिने-चुने लोग उसे पढ़ेंगे। औऱ अगर एक छोटा-सा घोटाला भी कर डालोगे, तो कई दिन तक मीडिया जगत तुम्हारे पीछे हाथ धोकर पड़ जाएगा। और तुम्हारे इतने गीत गाएगा कि देश का बच्चा-बच्चा भी तुम्हें जान जाएगा।’’

‘‘फिर सुझा ही दो, घोटाला करने का आसान-सा कोई उपाय। तरीका ऐसा हो कि साँप भी मरे और लाठी भी नहीं टूटे यानी कि नौकरी भी सही-सलामत रहे।’’

‘‘फ़िक्र मत करो मित्र, मैं एक घोटाला-किंग को जानता हूँ। अनेक बड़े कांड करके भी वह पाक दामन सिद्ध हुआ है। कल उससे तुम्हारी मुलाकात करवा देता हूँ। इस वक़्त मुल्क और मीडिया का मिज़ाज भी घोटालों के अनुकूल है। अतः ईश्वर ने चाहा तो तुम्हें सरलता से सफलता मिल जाएगी।’’

Friday, 25 January 2019

चालाक महिला

January 25, 2019 0
चालाक महिला
चालाक महिला





एक दिन एक औरत गोल्फ खेल रही थी| जब उसने बॉल को हिट किया तो वह जंगल में चली गई|

जब वह बॉल को खोजने गई तो उसे एक मेंढक मिला जो जाल में फंसा हुआ था| मेंढक ने उससे कहा - "अगर तुम मुझे इससे आजाद कर दोगी तो मैं तुम्हें तीन वरदान दूँगा|

"महिला ने उसे आजाद कर दिया

मेंढक ने कहा - "धन्यवाद, लेकिन तीन वरदानों में मेरी एक शर्त है जो भी तुम माँगोगी तुम्हारे पति को उससे दस गुना मिलेगा|

महिला ने कहा - "ठीक है" उसने पहला वरदान मांगा कि मैं संसार की सबसे खुबसूरत स्त्री बनना चाहती हूँ|

मेंढक ने उसे चेताया - "क्या तुम्हें पता है कि ये वरदान तुम्हारे पति को संसार का सबसे सुंदर व्यक्ति बना देगा|

महिला बोली - "दैट्स ओके, क्योंकि मैं संसार की सबसे खुबसूरत स्त्री बन जाऊँगी और वो मुझे ही देखेगा!"

मेंढक ने कहा - "तथास्तु"

अपने दूसरे वरदान में उसने कहा कि मैं संसार की सबसे धनी महिला बनना चाहती हूँ|

मेंढक ने कहा - "यह तुम्हारे पति को विश्व का सबसे धनी पुरुष बना देगा और वो तुमसे दस गुना पैसे वाला होगा |"

महिला ने कहा - "कोई बात नहीं| मेरा सब कुछ उसका है और उसका सब कुछ मेरा !"

मेंढक ने कहा - "तथास्तु"

जब मेंढक ने अंतिम वरदान के लिये कहा तो उसने अपने लिए एक "हल्का सा हर्ट अटैक मांगा|"

मोरल ऑफ स्टोरीः महिलाएं बुद्धिमान होती हैं, उनसे बच के रहें !

महिला पाठकों से निवेदन है आगे ना पढें, आपके लिये जोक यहीं खत्म हो गया है | यहीं रुक जाएँ और अच्छा महसूस करें !!

पुरुष पाठकः कृपया आगे पढें|

उसके पति को उससे "10 गुना हल्का हार्ट अटैक" आया|

मोरल ऑफ द स्टोरी : महिलाएं सोचती हैं वे वास्तव में बुद्धिमान हैं|

उन्हें ऐसा सोचने दो, क्या फर्क पडता है| 

Wednesday, 23 January 2019

धर्म का मर्म और

January 23, 2019 0
धर्म का मर्म और
धर्म का मर्म




एक साधु शिष्यों के साथ कुम्भ के मेले में भ्रमण कर रहे थे। एक स्थान पर उनने एक बाबा को माला फेरते देखा। लेकिन वह बाबा माला फेरते- फेरते बार- बार आँखें खोलकर देख लेते कि लोगों ने कितना दान दिया है। साधु हँसे व आगे बढ़ गए।

आगे एक पंडित जी भागवत कह रहे थे, पर उनका चेहरा यंत्रवत था। शब्द भी भावों से कोई संगति नहीं खा रहे थे, चेलों की जमात बैठी थी। उन्हें देखकर भी साधु खिल- खिलाकर हँस पड़े।

थोड़ा आगे बढ़ने पर इस मण्डली को एक व्यक्ति रोगी की परिचर्या करता मिला। वह उसके घावों को धोकर मरहम पट्टी कर रहा था। साथ ही अपनी मधुर वाणी से उसे बार- बार सांत्वना दे रहा था। साधु कुछ देर उसे देखते रहे, उनकी आँखें छलछला आईं।

आश्रम में लौटते ही शिष्यों ने उनसे पहले दो स्थानों पर हँसने व फिर रोने का कारण पूछा। वे बोले-‘बेटा पहले दो स्थानों पर तो मात्र आडम्बर था पर भगवान की प्राप्ति के लिए एक ही व्यक्ति आकुल दिखा- वह, जो रोगी की परिचर्या कर रहा था। उसकी सेवा भावना देखकर मेरा हृदय द्रवित हो उठा और सोचने लगा न जाने कब जनमानस धर्म के सच्चे स्वरूप को समझेगा।’

सबसे बड़ा गरीब

एक महात्मा भ्रमण करते हुए नगर में से जा रहे थे। मार्ग में उन्हें एक रुपया मिला। महात्मा तो विरक्त और संतोषी व्यक्ति थे। वे भला उसका क्या करते? अतः उन्होंने किसी दरिद्र को यह रुपया देने का विचार किया। कई दिन तक वे तलाश करते रहे, लेकिन उन्हें कोई दरिद्र नहीं मिला।

एक दिन उन्होंने देखा कि एक राजा अपनी सेना सहित दूसरे राज्य पर चढ़ाई करने जा रहा है। साधु ने वह रुपया राजा के ऊपर फेंक दिया। इस पर राजा को नाराजगी भी हुई और आश्चर्य भी। क्योंकि, रुपया एक साधु ने फेंका था इसलिए उसने साधु से ऐसा करने का कारण पूछा।

साधु ने धैर्य के साथ कहा- ‘राजन्! मैंने एक रुपया पाया, उसे किसी दरिद्र को देने का निश्चय किया। लेकिन मुझे तुम्हारे बराबर कोई दरिद्र व्यक्ति नहीं मिला, क्योंकि जो इतने बड़े राज्य का अधिपति होकर भी दूसरे राज्य पर चढ़ाई करने जा रहा हो और इसके लिए युद्ध में अपार संहार करने को उद्यत हो रहा हो, उससे ज्यादा दरिद्र कौन होगा?’

राजा का क्रोध शान्त हुआ और अपनी भूल पर पश्चात्ताप करते हुए उसने वापिस अपने देश को प्रस्थान किया।

प्रेरणा
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हमें सदैव संतोषी वृत्ति रखनी चाहिए। संतोषी व्यक्ति को अपने पास जो साधन होते हैं, वे ही पर्याप्त लगते हैं। उसे और अधिक की भूख नहीं सताती।

Saturday, 12 January 2019

जब कवियों ने मनाई मित्र राजा की रूठी प्रेयसी

January 12, 2019 0
जब कवियों ने मनाई मित्र राजा की रूठी प्रेयसी

जब कवियों ने मनाई मित्र राजा की रूठी प्रेयसी



जोधपुर के राजा मानसिंह को इतिहास में शासक के रूप में कठोर, निर्दयी, अत्यंत क्रूर और कूटनीतिज्ञ माना जाता है पर साथ ही उनके व्यक्तित्त्व का एक दूसरा रूप भी था वे भक्त, कवि, कलाकार, उच्च कोटि के साहित्यकार, कला पारखी व कलाकारों, साहित्यकारों, कवियों को संरक्षण देने वाले दानी व दयालु व्यक्ति भी थे।

उनके व्यवहार, प्रकृति और स्वभाव के बारे में उनके शासकीय जीवन की कई घटनाएँ इतिहास में पढने के बाद उनके उच्चकोटि के कवि, भक्त और कला संरक्षण, दानी व दयालु होने के बारे में कोई कल्पना भी नहीं कर सकता पर उनके व्यवहार व स्वभाव में ये विरोधाभास स्पष्ट था । उनके दरबार में उनके सबसे अच्छे मित्रों में कवियों की सबसे ज्यादा भरमार थी।
वे कुछ मित्र कवियों और साहित्यकारों से सिर्फ साहित्य व काव्य चर्चा ही नहीं करते थे बल्कि मित्रता के नाते अपने व्यक्तिगत जीवन में भी सलाह मशविरा करते थे।

जन श्रुति है कि एक बार महाराजा मानसिंह की एक सुन्दर प्रेयसी किसी बात (ईगो) को लेकर अकड़ कर रूठ बैठी, अब वह आसानी से मान जाये तो यह उसके मान-सम्मान (ईगो) का सवाल था सो राजा मानसिंह की लाख कोशिशों के बावजूद वह प्रेयसी अपनी जिद नहीं छोड़ रही थी।

आखिर राजा मानसिंह ने अपनी व्यथा अपने तीन मित्र कवियों बांकिदास, उत्तमचंद और गुमानसिंह को बताई तो तय हुआ कि तीनों कवि राजा के साथ प्रेयसी को मनाने जायेंगे और सभी उसे मान (ईगो) त्यागने के लिए एक एक पंक्ति के काव्य रूपी में वाक्य में आग्रह करेंगे।

इस तरह योजना बनाकर तीनों कवि राजा के साथ प्रेयसी के कक्ष में गए और एक एक काव्य पंक्ति में अपने मनोभाव यूँ व्यक्त किये-
बांकिदास :- बांक तजो बातां करो
उत्तमचंद :- उत्तम चित गति आण
गुमान सिंह :- तज गुमान ऐ सुन्दरी
मानसिंह : मान कहे री मान
और चारों की काव्य पंक्तियाँ सुनते ही राजा की सुन्दरी प्रेयसी को हंसी आ गयी और उसने अपना हठ छोड़ दिया।

Wednesday, 9 January 2019

प्रसिद्ध प्रेम कहानी ढोला-मारू Part1

January 09, 2019 0
 प्रसिद्ध प्रेम कहानी ढोला-मारू Part1

प्रसिद्ध प्रेम कहानी ढोला-मारू



राजस्थान की मिट्टी वीरो के शौर्य और बलिदान के लिए मशहूर है। यहां के योद्धाओं की गाथाएं आज भी बड़े गर्व से सुनाई जाती हैं। केवल वीरों की गाथाएं नहीं हैं बल्कि उनकी कई की वसुंधरा पर कई प्रेम कहानियां भी हैं, जो आज भी बहुत प्रचलित हैं।

यहां कभी एक वेश्या ने अपने प्रेम के लिए पूरी सल्तनत को चुनौती दी तो कभी एक दासी के रूप के आगे नतमस्तक हो गया राजा। लेकिन आज हम आपको बता रहे है राजस्थान की सबसे चर्चित प्रेम कहानी जो इतिहास में 'ढोला-मारू' की प्रेम कहानी के नाम से विख्यात है। आज भी इस प्रेमी जोड़े का जिक्र यहां के लोकगीतों में होता है।

नरवर के राजा नल के तीन साल के पुत्र साल्हकुमार का विवाह बचपन में जांगलू देश (बीकानेर) के पूंगल नामक ठिकाने के स्वामी पंवार राजा पिंगल की पुत्री से हुआ था। चूंकि दोनों अभी बहुत छोटे थे इसलिए दुल्हन को ससुराल नहीं ले जाया गया।

बड़े होने पर राजकुमार की एक और शादी कर दी गई। अब तक राजकुमार अपनी बचपन में हुई शादी के बारे में भूल गया था। उधर जांगलू देश की राजकुमरी अब सयानी हो चुकी थी और उसकी खूबसूरती के चर्चे दूर-दूर तक होने लगे थे।

 मां बाप ने उसे ले जाने के लिए नरवर कई संदेश भेजे, लेकिन कोई भी संदेश राजकुमार तक नहीं पहुंच पाया।राजकुमार की दूसरी पत्नी ईर्ष्या के चलते राजा पिंगल द्वारा भेजे गए संदेश वाहकों को मरवा डालती थी। उसे इस बात का डर था कि राजकुमार को अगर पहली पत्नी के बारे में कुछ भी याद आया तो उसे छोड़कर वो पहली के पास चले जाएंगे। सका सबसे बड़ा कारण पहली राजकुमारी की सुंदरता थी।

उधर राजकुमारी साल्हकुमार के ख्वाबों में खोई थी। एक दिन उसके सपने में सल्हाकुमार आया इसके बाद वह वियोग की अग्नि में जलने लगी। उसे न खाने में रूचि रही और न किसी दूसरे काम में। ऐसी हालत देख उसकी मां ने राजा पिंगल से फिर संदेश भेजने का आग्रह किया, इस बार राजा पिंगल ने एक चतुर ढोली को नरवर भेजा।

जब ढोली नरवर के लिए रवाना हो रहा था तब राजकुमारी ने उसे अपने पास बुलाकर मारू राग में दोहे बनाकर दिए और समझाया कि कैसे उसके प्रियतम के सम्मुख जाकर गाकर सुनाना है। यह सब इसलिए किया गया क्योंकि दूसरी राजकुमारी किसी भी संदेस वाहक को राजा तक पहुंचने से पहले मरवा देती थी। ढोली (गायक) ने राजकुमारी को वचन दिया कि वह या तो राजकुमार को लेकर आएगा या फिर वहीं मर जाएगा।

चतुर ढोली याचक बनकर किसी तरह नरवर में राजकुमार के महल तक पहुंचा। रात में उसने ऊंची आवाज में गाना शुरू किया। बारिश की रिमझिम फुहारों में ढोली ने मल्हार राग में गाना शुरू किया। मल्हार राग का मधुर संगीत राजकुमार के कानों में गूंजने लगा।

वह झूमने लगा तब ढोली ने साफ शब्दों में राजकुमारी का संदेश गाया। गीत में राजकुमारी का नाम सुनते ही साल्हकुमार चौंका और उसे अपनी पहली शादी याद आ गई। ढोली ने गा-गाकर बताया कि उसकी प्रियतमा कितनी खूबसूरत है। और उसकी याद में कितने वियोग में है।

ढोली ने दोहों में राजकुमारी की खूबसूरती की व्याख्या कुछ ऐसे की। उसके चेहरे की चमक सूर्य के प्रकाश की तरह है,  झीणे कपड़ों में से शरीर ऐसे चमकता है मानो स्वर्ण झांक रहा हो। हाथी जैसी चाल, हीरों जैसे दांत, मूंग सरीखे होंठ है। बहुत से गुणों वाली, क्षमाशील, नम्र व कोमल है, गंगा के पानी जैसी गोरी है, उसका मन और तन श्रेष्ठ है। 

लेकिन उसका साजन तो जैसे उसे भूल ही गया है और लेने नहीं आता।ढोली पूरी रात ऐसे ही गाता रहा, सुबह राजकुमार ने उसे बुलाकर पूछा तो उसने पूंगल से लाया राजकुमारी का पूरा संदेशा सुनाया। आखिर साल्हकुमार ने अपनी पहली पत्नी को लाने हेतु पूंगल जाने का निश्चय किया पर उसकी दूसरी पत्नी मालवणी ने उसे रोक दिया। 

उसने कई बहाने बनाए पर मालवणी हर बार उसे किसी तरह रोक देती।आखिरकार एक दिन राजकुमार एक बहुत तेज चलने वाले ऊंट पर सवार होकर अपनी प्रियतमा को लेने पूंगल पहुंच गया। वियोग में जल रही राजकुमारी अपने प्रियतम से मिलकर खुशी से झूम उठी। आखिर उसे उसका प्रेम जो मिल गया था। दोनों ने पूंगल में कई दिन बिताए। दोनों एक दूसरे में खो गए। एक दिन दोनों ने नरवर जाने के लिए राजा पिंगल से विदा ली।


कहते हैं रास्ते के रेगिस्तान में राजकुमारी को सांप ने काट लिया पर शिव पार्वती ने आकर उसको जीवन दान दे दिया। लेकिन दोनों की मुसीबतें यहीं समाप्त नहीं हो रही थीं, इसके बाद वे उमर-सुमरा के राजकुमारी को पाने के लिए रचे षडय़ंत्र में फंस गए।
उमर-सुमरा साल्हकुमार को मारकर राजकुमारी को हासिल करना चाहता था सो वह उसके रास्ते में जाजम बिछाकर महफिल सजाकर बैठ गया। 

राजकुमार सल्हाकुमार अपनी खूबसूरत पत्नी को लेकर जब उधर से गुजरा तो उमर ने उससे मनुहार की और उसे रोक लिया। राजकुमार ने राजकुमारी को ऊंट पर बैठे रहने दिया और खुद उमर के साथ अमल की मनुहार लेने बैठ गया। (रेगिस्तानी इलाकों में किसी भी अतिथि की मनुहार या स्वागत अफीम के साथ की जाती है, अफीम को अमल कहते हैं)
इधर, ढोली गा रहा था और राजकुमार व उमर अफीम की मनुहार ले रहे थे। 

मारू के देश से आया ढोली बहुत चतुर था, उसे उमर सुमरा के षड्यंत्र का ज्ञान आभास हो गया था। ढोली ने चुपके से इस षड्यंत्र के बारे में राजकुमारी को बता दिया। राजकुमारी भी रेगिस्तान की बेटी थी, उसने ऊंट के एड मारी। ऊंट भागने लगा तो उसे रोकने के लिए राजकुमार दौड़ा, पास आते ही मारूवणी ने कहा - धोखा है जल्दी ऊंट पर चढ़ो, ये तुम्हें मारना चाहते हैं।

इसके बाद दोनों ने वहां से भागकर नरवर पहुंचकर ही दम लिया। यहां राजकुमारी का स्वागत सत्कार किया गया और वो वहां की रानी बनकर राज करने लगी।
इतिहास में इस प्रेमी जोड़े को ढोला मारू के नाम से जाना जाता है। तब से आज तक उनके नाम के गाने पूरे जोर-सोर से गाए जाते हैं और उनके प्रेम का गुनगान किया जाता है।

ढोला को रिझाने के लिए दाढ़ी (ढोली) द्वारा गाये कुछ दोहे -
आखडिया डंबर भई,नयण गमाया रोय ।
क्यूँ साजण परदेस में, रह्या बिंडाणा होय ।।
आँखे लाल हो गयी है , रो रो कर नयन गँवा दिए है,साजन परदेस में क्यों पराया हो गया है ।
दुज्जण बयण न सांभरी, मना न वीसारेह ।
कूंझां लालबचाह ज्यूँ, खिण खिण चीतारेह ।।
बुरे लोगों की बातों में आकर उसको (मारूवणी को) मन से मत निकालो । कुरजां पक्षी के लाल बच्चों की तरह वह क्षण क्षण आपको याद करती है । आंसुओं से भीगा चीर निचोड़ते निचोड़ते उसकी हथेलियों में छाले पड़ गए है ।

जे थूं साहिबा न आवियो, साँवण पहली तीज ।
बीजळ तणे झबूकडै, मूंध मरेसी खीज ।।
यदि आप सावन की तीज के पहले नहीं गए तो वह मुग्धा बिजली की चमक देखते ही खीजकर मर जाएगी ।
 आपकी मारूवण के रूप का बखान नहीं हो सकता । पूर्व जन्म के बहुत पुण्य करने वालों को ही ऐसी स्त्री मिलती है ।

नमणी, ख़मणी, बहुगुणी, सुकोमळी सुकच्छ ।
गोरी गंगा नीर ज्यूँ , मन गरवी तन अच्छ ।।
बहुत से गुणों वाली,क्षमशील,नम्र व कोमल है , गंगा के पानी जैसी गौरी है ,उसका मन और तन श्रेष्ठ है ।
गति गयंद,जंघ केळ ग्रभ, केहर जिमी कटि लंक ।
हीर डसण विप्रभ अधर, मरवण भ्रकुटी मयंक ।।
हाथी जैसी चाल, हीरों जैसे दांत,मूंग सरीखे होठ है । आपकी मारवणी की सिंहों जैसी कमर है ,चंद्रमा जैसी भोएं है ।

आदीता हूँ ऊजलो , मारूणी मुख ब्रण ।
झीणां कपड़ा पैरणां, ज्यों झांकीई सोब्रण ।।
मारवणी का मुंह सूर्य से भी उजला है ,झीणे कपड़ों में से शरीर यों चमकता है मानो स्वर्ण झाँक रहा हो ।



Tuesday, 8 January 2019

महिंद्रा-मूमल प्रेम कहानी

January 08, 2019 0
 महिंद्रा-मूमल प्रेम कहानी

महिंद्रा-मूमल प्रेम कहानी



गुजरात का हमीर जाडेजा अपनी ससुराल अमरकोट (सिंध) आया हुआ था । उसका विवाह अमरकोट के राणा वीसलदे सोढा की पुत्री से हुआ था ।

 राणा वीसलदे का पुत्र महिंद्रा व हमीर हमउम्र थे इसलिए दोनों में खूब जमती थी साथ खेलते,खाते,पीते,शिकार करते और मौज करते ।

एक दिन दोनों शिकार करते समय एक हिरण का पीछा करते करते दूर लोद्र्वा राज्य की काक नदी के पास आ पहुंचे उनका शिकार हिरण अपनी जान बचाने काक नदी में कूद गया, दोनों ने यह सोच कि बेचारे हिरण ने जल में जल शरण ली है अब उसे क्या मारना ।

शिकार छोड़ जैसे दोनों ने इधर उधर नजर दौड़ाई तो नदी के उस पार उन्हें एक सुन्दर बगीचा व उसमे बनी एक दुमंजिली झरोखेदार मेड़ी दिखाई दी ।

इस सुनसान स्थान मे इतना सुहावना स्थान देख दोनों की तबियत प्रसन्न हो गयी । अपने घोड़े नदी मे उतार दोनों ने नदी पार कर बागीचे मे प्रवेश किया इस वीरानी जगह पर इतना सुन्दर बाग़ देख दोनों आश्चर्यचकित थे कि अपने पडौस मे ऐसा नखलिस्तान !

 क्योंकि अभी तक तो दोनों ने ऐसे नखलिस्तानों के बारे मे सौदागरों से ही चर्चाएँ सुनी थी ।



उनकी आवाजें सुन मेड़ी मे बैठी मूमल ने झरोखे से निचे झांक कर देखा तो उसे गर्दन पर लटके लम्बे काले बाल,भौंहों तक तनी हुई मूंछे,चौड़ी छाती और मांसल भुजाओं वाले दो खुबसूरत नौजवान अपना पसीना सुखाते दिखाई दिए । 

मूमल ने तुरंत अपनी दासी को बुलाकर कर कहा- नीचे जा, नौकरों से कह इन सरदारों के घोड़े पकड़े व इनके रहने खाने का इंतजाम करे, दोनों किसी अच्छे राजपूत घर के लगते है शायद रास्ता भूल गए है इनकी अच्छी खातिर करा ।