2019 - Best Love Story

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Tuesday, 29 January 2019

थोडा मुस्कुरा लीजिये

January 29, 2019 0
थोडा मुस्कुरा लीजिये
थोडा मुस्कुरा लीजिये



दो भाई थे। एक की उम्र 8 साल दूसरे की 10 साल। दोनों बड़े ही शरारती थे। उनकी शैतानियों से पूरा मोहल्ला तंग आया हुआ था। माता-पिता रातदिन इसी चिन्ता में डूबे रहते कि आज पता नहीं वे दोनों क्या करें।

एक दिन गांव में एक साधु आया। लोगों का कहना था कि बड़े ही पहुंचे हुये महात्मा है। जिसको आशीर्वाद दे दें उसका कल्याण हो जाये। पड़ोसन ने बच्चों की मां को सलाह दी कि तुम अपने बच्चों को इन साधु के पास ले जाओ। शायद उनके आशीर्वाद से उनकी बुध्दि कुछ ठीक हो जाये। मां को पड़ोसन की बात ठीक लगी। पड़ोसन ने यह भी कहा कि दोनों को एक साथ मत ले जाना नहीं तो क्या पता दोनों मिलकर वहीं कुछ शरारत कर दें और साधु नाराज हो जाये।

अगले ही दिन मां छोटे बच्चे को लेकर साधु के पास पहुंची। साधु ने बच्चे को अपने सामने बैठा लिया और मां से बाहर जाकर इंतजार करने को कहा ।

साधु ने बच्चे से पूछा – ”बेटे, तुम भगवान को जानते हो न ? बताओ, भगवान कहां है ?”

बच्चा कुछ नहीं बोला बस मुंह बाए साधु की ओर देखता रहा। साधु ने फिर अपना प्रश्न दोहराया । पर बच्चा फिर भी कुछ नहीं बोला। अब साधु को कुछ चिढ़ सी आई। उसने थोड़ी नाराजगी प्रकट करते हुये कहा – ”मैं क्या पूछ रहा हूं तुम्हें सुनाई नहीं देता । जवाब दो, भगवान कहां है ?

” बच्चे ने कोई जवाब नहीं दिया बस मुंह बाए साधु की ओर हैरानी भरी नजरों से देखता रहा।

अचानक जैसे बच्चे की चेतना लौटी। वह उठा और तेजी से बाहर की ओर भागा। साधु ने आवाज दी पर वह रूका नहीं सीधा घर जाकर अपने कमरे में पलंग के नीचे छुप गया। बड़ा भाई, जो घर पर ही था, ने उसे छुपते हुये देखा तो पूछा – ”क्या हुआ ? छुप क्यों रहे हो ?”

”भैया, तुम भी जल्दी से कहीं छुप जाओ।” बच्चे ने घबराये हुये स्वर में कहा।

”पर हुआ क्या ?” बड़े भाई ने भी पलंग के नीचे घुसने की कोशिश करते हुये पूछा।

”अबकी बार हम बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गये हैं। भगवान कहीं गुम हो गया है और लोग समझ रहे हैं कि इसमें हमारा हाथ है!

एक अदद घोटाला

January 29, 2019 0
एक अदद घोटाला
एक अदद घोटाला



सदा की भाँति श्रीमती जी ने चाय का कप और अख़बार एक साथ थमाया। फिर, ख़ुद पास आकर बैठ गईं। चाय को मेज़ पर रख, मैंने अखबार को खोला। मुख्यपृष्ठ पर प्रकाशित एक ख़बर को पढ़कर चित्त उदास हो गया। दीर्घ निश्वास छोड़ी मैंने।

पत्नी ने शंकित स्वर में पूछा, ‘‘क्या हुआ ? तबीयत तो ठीक है ?’’

मैंने उस सचित्र समाचार की ओर संकेत किया। पत्नी ने ख़बर की तरफ़ ध्यान नहीं देकर उसके साथ छपे चित्र को घूरा और बोली, ‘‘हाय...क्या हैंडसम पर्सनैल्टी है ? कैसा मुस्करा रहा है ? लेकिन इसे देख आप उदास क्यों हुए ?’’

मैं बोला, ‘‘इस आदमी पर अरबों रुपए के घोटाले का आरोप है।’’

‘‘तो क्या हुआ ? वह रुपया आपका तो नहीं है ! अरे, इतने उदास तो आप दंगों और दुर्घटनाओं के समाचारों को पढ़कर भी नहीं होते।’’

‘‘मैंडम ! मीडिया घोटालेबाज़ों को बड़ा उछाल रहा है। शेष समाचार घोटालों की ख़बरों के नीचे हैं। छोटे सो छोटा घोटाला भी ख़ासी सुर्ख़ियों में प्रकाशित होता है। राई का पहाड़ बन जाता है। बस, इसी बात से मेरा मन रोता है। नैतिक समाचारों को नीचा दर्जा और अनैतिक को ऊँचा। सोच रहा हूँ कि एक घोटाला मैं भी कर दूँ।’’

‘‘दैया रे...!’’ पत्नी बोली, ‘‘नौकरीपेशा होकर कैसी बात कर रहे हैं आप ? ऐसा सोचना भी पाप है। आप फँस गए तो हम कहीं के नहीं रहेंगे।’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा। हाँ, पूछताछ और गिरफ़्तारी जैसी कुछेक प्रक्रियाओं से अवश्य गुज़रना होगा। लेकिन, हमारे क़ानून में बच निकलने की अनेक गलियाँ हैं। तभी तो घोटालेबाज़ों का बाल भी बाँका नहीं हो पाता है। प्रसिद्धि पाने का इससे आसान उपाय कोई और नहीं। एक अदद घोटाला कर दो। फिर मीडिया में सनसनीखेज़ सुर्खियाँ होंगी। हो सकता है कि कोई अखबार संपादकीय भी लिख मारे। कदाचित् कभी प्रतियोगी परीक्षाओं के सामान्य ज्ञान के पर्चे में अपना नाम भी जुड़ जाए। विधानसभा या लोकसभा में हंगामें मच जाएँ। घोटालेबाज़ की पाँचों अंगुलियाँ घी में हुआ करती हैं, मैडम !’’

इससे पहले पत्नी कुछ कहतीं, मित्र ठेपीलाल नमूदार हुए। मैं उमंगपूर्वक बोला, ‘‘आओ भई, आओ; बड़े मौक़े पर तशरीफ़ लाए हो।’’

‘‘आज भाभी से बड़ी घुट-घुटकर बातें हो रही हैं। मैं दो मिनट से खड़ा हूँ और आप लोगों को मेरे आने के आभास तक नहीं है।’’ ठेपीलाल सोफ़े पर पसरते हुए बोले।

मैंने कहा, ‘‘ठेपी भाई, कई दिन से एक कीड़ा मेरे दिमाग़ में कुलबुला रहा है। घोटालों के इस दौर में, क्यों न एक घोटाला मैं भी कर डालूँ ?’’ मैंने अखबार ठेपी की ओर ठेलते हुए कहा, ‘‘यह देखो, इस घोटालेबाज़ की ख़बर कैसी प्रमुखता से प्रकाशित हुई है ?’’

ठेपी ने एक उड़ती निगाह समाचार-पत्र पर डाली और बोले, ‘‘इसके बारे में कल रात इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विस्तार से ख़बर दे चुका है। बहरहाल, पहली दफ़ा तुमने अकलमंदों जैसी बात की है। मैं तो कब से कह रहा था कि नाम कमाना है तो यह लेखन-वेखन का चक्कर छोड़ो और अपनी प्रतिभा को किसी दूसरी दिशा में लगाओ। साहित्य में कैसा भी बड़ा काम कर गुज़रोगे तो दो-चार पंक्तियों का समाचार छपेगा। गिने-चुने लोग उसे पढ़ेंगे। औऱ अगर एक छोटा-सा घोटाला भी कर डालोगे, तो कई दिन तक मीडिया जगत तुम्हारे पीछे हाथ धोकर पड़ जाएगा। और तुम्हारे इतने गीत गाएगा कि देश का बच्चा-बच्चा भी तुम्हें जान जाएगा।’’

‘‘फिर सुझा ही दो, घोटाला करने का आसान-सा कोई उपाय। तरीका ऐसा हो कि साँप भी मरे और लाठी भी नहीं टूटे यानी कि नौकरी भी सही-सलामत रहे।’’

‘‘फ़िक्र मत करो मित्र, मैं एक घोटाला-किंग को जानता हूँ। अनेक बड़े कांड करके भी वह पाक दामन सिद्ध हुआ है। कल उससे तुम्हारी मुलाकात करवा देता हूँ। इस वक़्त मुल्क और मीडिया का मिज़ाज भी घोटालों के अनुकूल है। अतः ईश्वर ने चाहा तो तुम्हें सरलता से सफलता मिल जाएगी।’’

Friday, 25 January 2019

चालाक महिला

January 25, 2019 0
चालाक महिला
चालाक महिला





एक दिन एक औरत गोल्फ खेल रही थी| जब उसने बॉल को हिट किया तो वह जंगल में चली गई|

जब वह बॉल को खोजने गई तो उसे एक मेंढक मिला जो जाल में फंसा हुआ था| मेंढक ने उससे कहा - "अगर तुम मुझे इससे आजाद कर दोगी तो मैं तुम्हें तीन वरदान दूँगा|

"महिला ने उसे आजाद कर दिया

मेंढक ने कहा - "धन्यवाद, लेकिन तीन वरदानों में मेरी एक शर्त है जो भी तुम माँगोगी तुम्हारे पति को उससे दस गुना मिलेगा|

महिला ने कहा - "ठीक है" उसने पहला वरदान मांगा कि मैं संसार की सबसे खुबसूरत स्त्री बनना चाहती हूँ|

मेंढक ने उसे चेताया - "क्या तुम्हें पता है कि ये वरदान तुम्हारे पति को संसार का सबसे सुंदर व्यक्ति बना देगा|

महिला बोली - "दैट्स ओके, क्योंकि मैं संसार की सबसे खुबसूरत स्त्री बन जाऊँगी और वो मुझे ही देखेगा!"

मेंढक ने कहा - "तथास्तु"

अपने दूसरे वरदान में उसने कहा कि मैं संसार की सबसे धनी महिला बनना चाहती हूँ|

मेंढक ने कहा - "यह तुम्हारे पति को विश्व का सबसे धनी पुरुष बना देगा और वो तुमसे दस गुना पैसे वाला होगा |"

महिला ने कहा - "कोई बात नहीं| मेरा सब कुछ उसका है और उसका सब कुछ मेरा !"

मेंढक ने कहा - "तथास्तु"

जब मेंढक ने अंतिम वरदान के लिये कहा तो उसने अपने लिए एक "हल्का सा हर्ट अटैक मांगा|"

मोरल ऑफ स्टोरीः महिलाएं बुद्धिमान होती हैं, उनसे बच के रहें !

महिला पाठकों से निवेदन है आगे ना पढें, आपके लिये जोक यहीं खत्म हो गया है | यहीं रुक जाएँ और अच्छा महसूस करें !!

पुरुष पाठकः कृपया आगे पढें|

उसके पति को उससे "10 गुना हल्का हार्ट अटैक" आया|

मोरल ऑफ द स्टोरी : महिलाएं सोचती हैं वे वास्तव में बुद्धिमान हैं|

उन्हें ऐसा सोचने दो, क्या फर्क पडता है| 

Wednesday, 23 January 2019

धर्म का मर्म और

January 23, 2019 0
धर्म का मर्म और
धर्म का मर्म




एक साधु शिष्यों के साथ कुम्भ के मेले में भ्रमण कर रहे थे। एक स्थान पर उनने एक बाबा को माला फेरते देखा। लेकिन वह बाबा माला फेरते- फेरते बार- बार आँखें खोलकर देख लेते कि लोगों ने कितना दान दिया है। साधु हँसे व आगे बढ़ गए।

आगे एक पंडित जी भागवत कह रहे थे, पर उनका चेहरा यंत्रवत था। शब्द भी भावों से कोई संगति नहीं खा रहे थे, चेलों की जमात बैठी थी। उन्हें देखकर भी साधु खिल- खिलाकर हँस पड़े।

थोड़ा आगे बढ़ने पर इस मण्डली को एक व्यक्ति रोगी की परिचर्या करता मिला। वह उसके घावों को धोकर मरहम पट्टी कर रहा था। साथ ही अपनी मधुर वाणी से उसे बार- बार सांत्वना दे रहा था। साधु कुछ देर उसे देखते रहे, उनकी आँखें छलछला आईं।

आश्रम में लौटते ही शिष्यों ने उनसे पहले दो स्थानों पर हँसने व फिर रोने का कारण पूछा। वे बोले-‘बेटा पहले दो स्थानों पर तो मात्र आडम्बर था पर भगवान की प्राप्ति के लिए एक ही व्यक्ति आकुल दिखा- वह, जो रोगी की परिचर्या कर रहा था। उसकी सेवा भावना देखकर मेरा हृदय द्रवित हो उठा और सोचने लगा न जाने कब जनमानस धर्म के सच्चे स्वरूप को समझेगा।’

सबसे बड़ा गरीब

एक महात्मा भ्रमण करते हुए नगर में से जा रहे थे। मार्ग में उन्हें एक रुपया मिला। महात्मा तो विरक्त और संतोषी व्यक्ति थे। वे भला उसका क्या करते? अतः उन्होंने किसी दरिद्र को यह रुपया देने का विचार किया। कई दिन तक वे तलाश करते रहे, लेकिन उन्हें कोई दरिद्र नहीं मिला।

एक दिन उन्होंने देखा कि एक राजा अपनी सेना सहित दूसरे राज्य पर चढ़ाई करने जा रहा है। साधु ने वह रुपया राजा के ऊपर फेंक दिया। इस पर राजा को नाराजगी भी हुई और आश्चर्य भी। क्योंकि, रुपया एक साधु ने फेंका था इसलिए उसने साधु से ऐसा करने का कारण पूछा।

साधु ने धैर्य के साथ कहा- ‘राजन्! मैंने एक रुपया पाया, उसे किसी दरिद्र को देने का निश्चय किया। लेकिन मुझे तुम्हारे बराबर कोई दरिद्र व्यक्ति नहीं मिला, क्योंकि जो इतने बड़े राज्य का अधिपति होकर भी दूसरे राज्य पर चढ़ाई करने जा रहा हो और इसके लिए युद्ध में अपार संहार करने को उद्यत हो रहा हो, उससे ज्यादा दरिद्र कौन होगा?’

राजा का क्रोध शान्त हुआ और अपनी भूल पर पश्चात्ताप करते हुए उसने वापिस अपने देश को प्रस्थान किया।

प्रेरणा
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हमें सदैव संतोषी वृत्ति रखनी चाहिए। संतोषी व्यक्ति को अपने पास जो साधन होते हैं, वे ही पर्याप्त लगते हैं। उसे और अधिक की भूख नहीं सताती।

Saturday, 12 January 2019

जब कवियों ने मनाई मित्र राजा की रूठी प्रेयसी

January 12, 2019 0
जब कवियों ने मनाई मित्र राजा की रूठी प्रेयसी

जब कवियों ने मनाई मित्र राजा की रूठी प्रेयसी



जोधपुर के राजा मानसिंह को इतिहास में शासक के रूप में कठोर, निर्दयी, अत्यंत क्रूर और कूटनीतिज्ञ माना जाता है पर साथ ही उनके व्यक्तित्त्व का एक दूसरा रूप भी था वे भक्त, कवि, कलाकार, उच्च कोटि के साहित्यकार, कला पारखी व कलाकारों, साहित्यकारों, कवियों को संरक्षण देने वाले दानी व दयालु व्यक्ति भी थे।

उनके व्यवहार, प्रकृति और स्वभाव के बारे में उनके शासकीय जीवन की कई घटनाएँ इतिहास में पढने के बाद उनके उच्चकोटि के कवि, भक्त और कला संरक्षण, दानी व दयालु होने के बारे में कोई कल्पना भी नहीं कर सकता पर उनके व्यवहार व स्वभाव में ये विरोधाभास स्पष्ट था । उनके दरबार में उनके सबसे अच्छे मित्रों में कवियों की सबसे ज्यादा भरमार थी।
वे कुछ मित्र कवियों और साहित्यकारों से सिर्फ साहित्य व काव्य चर्चा ही नहीं करते थे बल्कि मित्रता के नाते अपने व्यक्तिगत जीवन में भी सलाह मशविरा करते थे।

जन श्रुति है कि एक बार महाराजा मानसिंह की एक सुन्दर प्रेयसी किसी बात (ईगो) को लेकर अकड़ कर रूठ बैठी, अब वह आसानी से मान जाये तो यह उसके मान-सम्मान (ईगो) का सवाल था सो राजा मानसिंह की लाख कोशिशों के बावजूद वह प्रेयसी अपनी जिद नहीं छोड़ रही थी।

आखिर राजा मानसिंह ने अपनी व्यथा अपने तीन मित्र कवियों बांकिदास, उत्तमचंद और गुमानसिंह को बताई तो तय हुआ कि तीनों कवि राजा के साथ प्रेयसी को मनाने जायेंगे और सभी उसे मान (ईगो) त्यागने के लिए एक एक पंक्ति के काव्य रूपी में वाक्य में आग्रह करेंगे।

इस तरह योजना बनाकर तीनों कवि राजा के साथ प्रेयसी के कक्ष में गए और एक एक काव्य पंक्ति में अपने मनोभाव यूँ व्यक्त किये-
बांकिदास :- बांक तजो बातां करो
उत्तमचंद :- उत्तम चित गति आण
गुमान सिंह :- तज गुमान ऐ सुन्दरी
मानसिंह : मान कहे री मान
और चारों की काव्य पंक्तियाँ सुनते ही राजा की सुन्दरी प्रेयसी को हंसी आ गयी और उसने अपना हठ छोड़ दिया।

Wednesday, 9 January 2019

प्रसिद्ध प्रेम कहानी ढोला-मारू Part1

January 09, 2019 0
 प्रसिद्ध प्रेम कहानी ढोला-मारू Part1

प्रसिद्ध प्रेम कहानी ढोला-मारू



राजस्थान की मिट्टी वीरो के शौर्य और बलिदान के लिए मशहूर है। यहां के योद्धाओं की गाथाएं आज भी बड़े गर्व से सुनाई जाती हैं। केवल वीरों की गाथाएं नहीं हैं बल्कि उनकी कई की वसुंधरा पर कई प्रेम कहानियां भी हैं, जो आज भी बहुत प्रचलित हैं।

यहां कभी एक वेश्या ने अपने प्रेम के लिए पूरी सल्तनत को चुनौती दी तो कभी एक दासी के रूप के आगे नतमस्तक हो गया राजा। लेकिन आज हम आपको बता रहे है राजस्थान की सबसे चर्चित प्रेम कहानी जो इतिहास में 'ढोला-मारू' की प्रेम कहानी के नाम से विख्यात है। आज भी इस प्रेमी जोड़े का जिक्र यहां के लोकगीतों में होता है।

नरवर के राजा नल के तीन साल के पुत्र साल्हकुमार का विवाह बचपन में जांगलू देश (बीकानेर) के पूंगल नामक ठिकाने के स्वामी पंवार राजा पिंगल की पुत्री से हुआ था। चूंकि दोनों अभी बहुत छोटे थे इसलिए दुल्हन को ससुराल नहीं ले जाया गया।

बड़े होने पर राजकुमार की एक और शादी कर दी गई। अब तक राजकुमार अपनी बचपन में हुई शादी के बारे में भूल गया था। उधर जांगलू देश की राजकुमरी अब सयानी हो चुकी थी और उसकी खूबसूरती के चर्चे दूर-दूर तक होने लगे थे।

 मां बाप ने उसे ले जाने के लिए नरवर कई संदेश भेजे, लेकिन कोई भी संदेश राजकुमार तक नहीं पहुंच पाया।राजकुमार की दूसरी पत्नी ईर्ष्या के चलते राजा पिंगल द्वारा भेजे गए संदेश वाहकों को मरवा डालती थी। उसे इस बात का डर था कि राजकुमार को अगर पहली पत्नी के बारे में कुछ भी याद आया तो उसे छोड़कर वो पहली के पास चले जाएंगे। सका सबसे बड़ा कारण पहली राजकुमारी की सुंदरता थी।

उधर राजकुमारी साल्हकुमार के ख्वाबों में खोई थी। एक दिन उसके सपने में सल्हाकुमार आया इसके बाद वह वियोग की अग्नि में जलने लगी। उसे न खाने में रूचि रही और न किसी दूसरे काम में। ऐसी हालत देख उसकी मां ने राजा पिंगल से फिर संदेश भेजने का आग्रह किया, इस बार राजा पिंगल ने एक चतुर ढोली को नरवर भेजा।

जब ढोली नरवर के लिए रवाना हो रहा था तब राजकुमारी ने उसे अपने पास बुलाकर मारू राग में दोहे बनाकर दिए और समझाया कि कैसे उसके प्रियतम के सम्मुख जाकर गाकर सुनाना है। यह सब इसलिए किया गया क्योंकि दूसरी राजकुमारी किसी भी संदेस वाहक को राजा तक पहुंचने से पहले मरवा देती थी। ढोली (गायक) ने राजकुमारी को वचन दिया कि वह या तो राजकुमार को लेकर आएगा या फिर वहीं मर जाएगा।

चतुर ढोली याचक बनकर किसी तरह नरवर में राजकुमार के महल तक पहुंचा। रात में उसने ऊंची आवाज में गाना शुरू किया। बारिश की रिमझिम फुहारों में ढोली ने मल्हार राग में गाना शुरू किया। मल्हार राग का मधुर संगीत राजकुमार के कानों में गूंजने लगा।

वह झूमने लगा तब ढोली ने साफ शब्दों में राजकुमारी का संदेश गाया। गीत में राजकुमारी का नाम सुनते ही साल्हकुमार चौंका और उसे अपनी पहली शादी याद आ गई। ढोली ने गा-गाकर बताया कि उसकी प्रियतमा कितनी खूबसूरत है। और उसकी याद में कितने वियोग में है।

ढोली ने दोहों में राजकुमारी की खूबसूरती की व्याख्या कुछ ऐसे की। उसके चेहरे की चमक सूर्य के प्रकाश की तरह है,  झीणे कपड़ों में से शरीर ऐसे चमकता है मानो स्वर्ण झांक रहा हो। हाथी जैसी चाल, हीरों जैसे दांत, मूंग सरीखे होंठ है। बहुत से गुणों वाली, क्षमाशील, नम्र व कोमल है, गंगा के पानी जैसी गोरी है, उसका मन और तन श्रेष्ठ है। 

लेकिन उसका साजन तो जैसे उसे भूल ही गया है और लेने नहीं आता।ढोली पूरी रात ऐसे ही गाता रहा, सुबह राजकुमार ने उसे बुलाकर पूछा तो उसने पूंगल से लाया राजकुमारी का पूरा संदेशा सुनाया। आखिर साल्हकुमार ने अपनी पहली पत्नी को लाने हेतु पूंगल जाने का निश्चय किया पर उसकी दूसरी पत्नी मालवणी ने उसे रोक दिया। 

उसने कई बहाने बनाए पर मालवणी हर बार उसे किसी तरह रोक देती।आखिरकार एक दिन राजकुमार एक बहुत तेज चलने वाले ऊंट पर सवार होकर अपनी प्रियतमा को लेने पूंगल पहुंच गया। वियोग में जल रही राजकुमारी अपने प्रियतम से मिलकर खुशी से झूम उठी। आखिर उसे उसका प्रेम जो मिल गया था। दोनों ने पूंगल में कई दिन बिताए। दोनों एक दूसरे में खो गए। एक दिन दोनों ने नरवर जाने के लिए राजा पिंगल से विदा ली।


कहते हैं रास्ते के रेगिस्तान में राजकुमारी को सांप ने काट लिया पर शिव पार्वती ने आकर उसको जीवन दान दे दिया। लेकिन दोनों की मुसीबतें यहीं समाप्त नहीं हो रही थीं, इसके बाद वे उमर-सुमरा के राजकुमारी को पाने के लिए रचे षडय़ंत्र में फंस गए।
उमर-सुमरा साल्हकुमार को मारकर राजकुमारी को हासिल करना चाहता था सो वह उसके रास्ते में जाजम बिछाकर महफिल सजाकर बैठ गया। 

राजकुमार सल्हाकुमार अपनी खूबसूरत पत्नी को लेकर जब उधर से गुजरा तो उमर ने उससे मनुहार की और उसे रोक लिया। राजकुमार ने राजकुमारी को ऊंट पर बैठे रहने दिया और खुद उमर के साथ अमल की मनुहार लेने बैठ गया। (रेगिस्तानी इलाकों में किसी भी अतिथि की मनुहार या स्वागत अफीम के साथ की जाती है, अफीम को अमल कहते हैं)
इधर, ढोली गा रहा था और राजकुमार व उमर अफीम की मनुहार ले रहे थे। 

मारू के देश से आया ढोली बहुत चतुर था, उसे उमर सुमरा के षड्यंत्र का ज्ञान आभास हो गया था। ढोली ने चुपके से इस षड्यंत्र के बारे में राजकुमारी को बता दिया। राजकुमारी भी रेगिस्तान की बेटी थी, उसने ऊंट के एड मारी। ऊंट भागने लगा तो उसे रोकने के लिए राजकुमार दौड़ा, पास आते ही मारूवणी ने कहा - धोखा है जल्दी ऊंट पर चढ़ो, ये तुम्हें मारना चाहते हैं।

इसके बाद दोनों ने वहां से भागकर नरवर पहुंचकर ही दम लिया। यहां राजकुमारी का स्वागत सत्कार किया गया और वो वहां की रानी बनकर राज करने लगी।
इतिहास में इस प्रेमी जोड़े को ढोला मारू के नाम से जाना जाता है। तब से आज तक उनके नाम के गाने पूरे जोर-सोर से गाए जाते हैं और उनके प्रेम का गुनगान किया जाता है।

ढोला को रिझाने के लिए दाढ़ी (ढोली) द्वारा गाये कुछ दोहे -
आखडिया डंबर भई,नयण गमाया रोय ।
क्यूँ साजण परदेस में, रह्या बिंडाणा होय ।।
आँखे लाल हो गयी है , रो रो कर नयन गँवा दिए है,साजन परदेस में क्यों पराया हो गया है ।
दुज्जण बयण न सांभरी, मना न वीसारेह ।
कूंझां लालबचाह ज्यूँ, खिण खिण चीतारेह ।।
बुरे लोगों की बातों में आकर उसको (मारूवणी को) मन से मत निकालो । कुरजां पक्षी के लाल बच्चों की तरह वह क्षण क्षण आपको याद करती है । आंसुओं से भीगा चीर निचोड़ते निचोड़ते उसकी हथेलियों में छाले पड़ गए है ।

जे थूं साहिबा न आवियो, साँवण पहली तीज ।
बीजळ तणे झबूकडै, मूंध मरेसी खीज ।।
यदि आप सावन की तीज के पहले नहीं गए तो वह मुग्धा बिजली की चमक देखते ही खीजकर मर जाएगी ।
 आपकी मारूवण के रूप का बखान नहीं हो सकता । पूर्व जन्म के बहुत पुण्य करने वालों को ही ऐसी स्त्री मिलती है ।

नमणी, ख़मणी, बहुगुणी, सुकोमळी सुकच्छ ।
गोरी गंगा नीर ज्यूँ , मन गरवी तन अच्छ ।।
बहुत से गुणों वाली,क्षमशील,नम्र व कोमल है , गंगा के पानी जैसी गौरी है ,उसका मन और तन श्रेष्ठ है ।
गति गयंद,जंघ केळ ग्रभ, केहर जिमी कटि लंक ।
हीर डसण विप्रभ अधर, मरवण भ्रकुटी मयंक ।।
हाथी जैसी चाल, हीरों जैसे दांत,मूंग सरीखे होठ है । आपकी मारवणी की सिंहों जैसी कमर है ,चंद्रमा जैसी भोएं है ।

आदीता हूँ ऊजलो , मारूणी मुख ब्रण ।
झीणां कपड़ा पैरणां, ज्यों झांकीई सोब्रण ।।
मारवणी का मुंह सूर्य से भी उजला है ,झीणे कपड़ों में से शरीर यों चमकता है मानो स्वर्ण झाँक रहा हो ।



Tuesday, 8 January 2019

महिंद्रा-मूमल प्रेम कहानी

January 08, 2019 0
 महिंद्रा-मूमल प्रेम कहानी

महिंद्रा-मूमल प्रेम कहानी



गुजरात का हमीर जाडेजा अपनी ससुराल अमरकोट (सिंध) आया हुआ था । उसका विवाह अमरकोट के राणा वीसलदे सोढा की पुत्री से हुआ था ।

 राणा वीसलदे का पुत्र महिंद्रा व हमीर हमउम्र थे इसलिए दोनों में खूब जमती थी साथ खेलते,खाते,पीते,शिकार करते और मौज करते ।

एक दिन दोनों शिकार करते समय एक हिरण का पीछा करते करते दूर लोद्र्वा राज्य की काक नदी के पास आ पहुंचे उनका शिकार हिरण अपनी जान बचाने काक नदी में कूद गया, दोनों ने यह सोच कि बेचारे हिरण ने जल में जल शरण ली है अब उसे क्या मारना ।

शिकार छोड़ जैसे दोनों ने इधर उधर नजर दौड़ाई तो नदी के उस पार उन्हें एक सुन्दर बगीचा व उसमे बनी एक दुमंजिली झरोखेदार मेड़ी दिखाई दी ।

इस सुनसान स्थान मे इतना सुहावना स्थान देख दोनों की तबियत प्रसन्न हो गयी । अपने घोड़े नदी मे उतार दोनों ने नदी पार कर बागीचे मे प्रवेश किया इस वीरानी जगह पर इतना सुन्दर बाग़ देख दोनों आश्चर्यचकित थे कि अपने पडौस मे ऐसा नखलिस्तान !

 क्योंकि अभी तक तो दोनों ने ऐसे नखलिस्तानों के बारे मे सौदागरों से ही चर्चाएँ सुनी थी ।



उनकी आवाजें सुन मेड़ी मे बैठी मूमल ने झरोखे से निचे झांक कर देखा तो उसे गर्दन पर लटके लम्बे काले बाल,भौंहों तक तनी हुई मूंछे,चौड़ी छाती और मांसल भुजाओं वाले दो खुबसूरत नौजवान अपना पसीना सुखाते दिखाई दिए । 

मूमल ने तुरंत अपनी दासी को बुलाकर कर कहा- नीचे जा, नौकरों से कह इन सरदारों के घोड़े पकड़े व इनके रहने खाने का इंतजाम करे, दोनों किसी अच्छे राजपूत घर के लगते है शायद रास्ता भूल गए है इनकी अच्छी खातिर करा ।

Sunday, 6 January 2019

रूपमती से हुआ था अकबर को प्रेम

January 06, 2019 0
रूपमती से हुआ था अकबर को प्रेम

रूपमती से हुआ था अकबर को प्रेम




मांडू की रानी और सुल्तान बाज बहादुर की बेगम रूपमती से अकबर को प्रेम हो गया था। रानी रूपमती को पाने के लिए अकबर ने एक साजिश के तहत सुल्तान बाज बहादुर पर ने सिर्फ हमला करवाया था, बल्कि उन्हें बंदी भी बना लिया था और रानी को अपने पति से अलग करना चाहा था।

 इस बात से दुखी रानी रूपमती ने विष पीकर अपनी जान दे दी थी।स प्रेम की अनोखी दास्तां के बारे में जानकर अकबर को बहुत पछतावा हुआ।

 दो प्रेमियों को अलग करने का जिम्मेदार खुद को मानने वाले अकबर के आदेश पर रानी रूपमती के शव को ससम्मान सारंगपुर भेजकर दफनाया गया।

इतना ही नहीं अकबर ने रानी की मजार भी बनवाई। रानी की मौत से दुखी अकबर ने फौरन बंधक बनाए सुल्तान बाज बहादुर को आजाद कर दिया। 

मुक्त होते ही बाज बहादुर को अकबर ने मिलने के लिए अपने दरबार में बुलाया।

बाज बहादुर ने अकबर से अपनी अंतिम इच्छा जाहिर करते हुए सारंगपुर जाने की बात कही। इस पर अकबर ने बाज बहादुर को दिल्ली से पालकी में बैठाकर सारंगपुर भिजवाया। यहां बाज बहादुर ने रूपमती की मजार पर सिर पटक-पटक कर जान दे दी। बाद में रूपमती के पास में ही बाज बहादुर की मजार भी बनाई गई।

इतना ही नहीं अकबर ने प्रेमिका की समाधि पर जान देने वाले बाज बहादुर का मकबरा भी बनवाया।

अकबर ने बाज बहादुर के मकबरा पर आशिक ए सादिक और रानी रूपमति की समाधि पर 'शहीदे ए वफा' लिखवाया था। हालांकि वह शिलालेख अब वहां मौजूद नहीं है, लेकिन जानने वाले इसे इसी नाम से पुकारते हैं।

Saturday, 5 January 2019

तमन्ना की कहानियाँ Part 8

January 05, 2019 0
तमन्ना की कहानियाँ Part 8
तमन्ना की कहानियाँ



क़ासिम ने अकड़कर कहा-आप दिल्ली जायें ही क्यों! हम सबुह होते-होते भरतपुर पहुँच सकते हैं।

शहजादी–मगर हिन्दोस्तान के बाहर तो नहीं जा सकते। दिल्ली की आंख का कांटा  बनकर मुमकिन है हम जंगलों और वीरानों में जिन्दगी के दिन काटें पर चैन नसीब न होगा। 

असलियत की तरफ से आंखे न बन्द की जिए, खुदा न आपकी बहादुरी दी है, पर तेगे इस्फ़हानी भी तो पहाड़ से टकराकर टुट ही जाएगी।

कासिम का जोश कुछ धीमा हुआ। भ्रम का परदा नजरों से हट गया। कल्पना की दुनिया में बढ़-बढ़कर बातें करना बाते करना आदमी का गुण है। क़ासिम को अपनी बेबसी साफ़ दिखाई पड़ने लगी। 

बेशक मेरी यह लनतरानियां मज़ाक की चीज़ हैं। दिल्ली के शाह के मुक़ाबिलें में मेरी क्या हस्ती है? उनका एक इशारा मेरी हस्ती को मिटा सकता है। 

हसरत-भरे लहजे में बोला-मान लीजिए, हमको जंगलो और बीरानों में ही जिन्दगी के दिन काटने पड़ें तो क्या? मुहब्बत करनेवाले अंधेरे कोने में भी चमन की सैर का लुफ़्त उठाते हैं। मुहब्बत में वह फ़क़ीरों और दरवेशों जैसा अलगाव है, जो दुनिया की नेमतों की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखता।

शहज़ादी–मगर मुझ से  यह कब मुमकिन है कि अपनी भलाई के लिए आपको इन खतरों में डालूँ? मै शाहे दिल्ली के जुल्मों की कहानियां सुन चुकी हूँ, उन्हें याद करके रोंगेटे खड़े हो जाते हैं। 

खुदा वह दिन न लाये कि मेरी वजह से आपका बाल भी बांका हो। आपकी लड़ाइयों के चर्चे, आपकी खैरियत की खबरे, उस क़ैद में मुझको तसकीन और ताक़त देंगी। 

मैं मुसीबते झेलूंगी और हंस–हंसकर आग में जलूँगी और माथे पर बल न आने दूँगी। हॉँ, मै शाहे दिल्ली के दिल को अपना बनाऊँगी, सिर्फ आपकी खातिर से ताकि आपके लिए मौक़ा पड़ने पर दो-चार अच्छी बातें कह सकूँ।

Friday, 4 January 2019

तमन्ना की कहानियाँ Part 7

January 04, 2019 0
तमन्ना की कहानियाँ Part 7
तमन्ना की कहानियाँ



क़ासिम पर एक बेसुधी की सी हालत छा गयी। जैसे आत्मा का गीत सुनने के बाद किसी योगी की होती है। उसे सपने में भी जो उम्मीद न हो सकती थी, वह पूरी हो गयी थी। गर्व से उसकी गर्दन की रगें तन गयीं, उसे मालूम हुआ कि दुनिया में मुझसे ज्यादा भाग्यशाली दूसरा  नहीं है।

 मैं चाहूँ तो इस रूप की वाटिका की बहार लूट सकता हूँ, इस  प्याले से मस्त हो सकता हूँ। आह वह कितनी नशीली, कितनी मुबारक जिन्दगी होती! अब तक क़ासिम की मुहब्बत ग्वाले का दूध थी, पानी से मिली हुई; शहज़ादी के दिल की तड़प ने पानी को जलाकर सच्चाई का रंग पैदा कर दिया।

उसके दिल ने कहा-मैं इस रूप की रानी के लिए क्या कुछ नहीं कर सकता? कोई ऐसी मुसीबत नहीं है जो झेल न सकूँ, कोई आग नहीं, जिसमें कूद न सकूं, मुझे किसका डर है!

 बादशाह का? मैं बादशाह का गुलाम नहीं, उसके सामने हाथ फैलानेवाला नहीं, उसका मोहताज नहीं। मेरे जौहर की हर एक दरबार में कद्र हो सकती है।

मैं आज इस गूलामी की जंजीर को तोड़ डालूँगा और उस देश में जा बसूँगा, जहां बादशाह के फ़रिश्ते भी पर नहीं मार सकते। हुस्न की नेमत पाकर अब मुझे और किसी चीज़ की इच्छा नहीं।

 अब अपनी आरजुओं का क्यों गला घोटूं? कामनाओं को क्यों निराशा का ग्रास बनने दूँ? उसने उन्माद की-सी स्थिति में कमर से तलवार निकाली और जोश के साथ बोला–जब  तक मेरे बाजूओ में दम है, कोई आपकी तरफ़ आंख उठाकर देख भी नहीं सकता।

 चाहे वह दिल्ली का बादशाह ही क्यो ने हो!  मैं दिल्ली के कूचे और बाजार में खून की नदी बहा दुंगा, सल्तनत की जड़े हिलाउ दुँगा, शाही तख्त को उल्ट-पलट रख दूँगा, और कुछ न कर सकूंगा तो मर मिटूंगा। पर अपनी आंखो से आपकी याह जिल्लत न देखूँगा।

शहज़ादी आहिस्ता-आहिस्ता उसके क़रीब आयी बोली-मुझे आप पर पूरा भरोसा है, लेकिन आपको मेरी ख़ातिर से जब्त और सब्र करना होगा। आपके लिए मैं महलहरा की तकलीफ़ें और जुल्म सब सह लूंगी। आपकी मुहब्बत ही मेरी जिन्दगी का सहारा होगी। यह यक़ीन कि आप मुझे अपनी लौंडी समझते हैं, मुझे हमेशा सम्हालता रहेगा। कौन जाने तक़दीर हमें फिर मिलाये।


Thursday, 3 January 2019

तमन्ना की कहानियाँ Part 6

January 03, 2019 0
तमन्ना की कहानियाँ  Part 6
तमन्नाकी कहानियाँ




लेकिन वह वासना बन्दी वहां से हिला नहीं। उसकी आरजुओं ने एक कदम और आगे बढाया। मेरी इस रामकहानी का हासिल क्या? अगर सिर्फ़ दर्दे दिल ही सुनाना था, तो किसी तसवीर को, सुना सकता था।

 वह तसवीर इससे ज्यादा ध्यान से और ख़ामाशी से मेरे ग़म की दास्तान सुनती। काश, मैं भी इस रूप की रानी की मिठी आवाज सुनता, वह भी मुझसे कुछ अपने दिल का हाल कहती, मुझे मालूम होता कि मेरे इस दर्द के किस्से का उसके दिल पर क्या असर हुआ।

काश, मुझे मालूत होता कि जिस आग में मैं फुंका जा रहा हूँ, कुछ उसकी आंच उधर भी पहुँचती है या नहीं। कौन जाने यह सच हो कि मुहब्बत पहले माशूक के दिल में पैदा होती है। ऐसा न होता तो वह सब्र को तोड़ने वाली निगाह मुझ पर पड़ती ही क्यों? आह, इस हुस्न की देवी की बातों में कितना लुत्फ़ आयेगा।

बुलबुल का गाना सुन सकता, उसकी आवाज कितनी दिलकश होगी, कितनी पाकीजा, कितनी नूरानी, अमृत में डूबीं हुई और जो कहीं वह भी मुझसे प्यार करती हो तो फिर मुझसे ज्यादा खुशनसीब दुनिया में और कौन होगा?

इस ख़याल से क़ासिम का दिल उछलने लगा। रगों में एक हरकत-सी महसूस हुई। इसके बावजूद कि बांदियों के जग जाने और मसरूर की वापसी का धड़का लगा हुआ था, आपसी बातचीत की इच्छा ने उसे अधीर कर दिया, बोला-हुस्न की मलका, यह जख्म़ी दिल आपकी इनायत की नज़र की मुस्तहक है। कुड़ उसके हाल पर रहम न  कीजिएगा?

शहज़ादी ने नकाब की ओट से उसकी तरफ़ ताका और बोली–जो खुद रहम का मुस्तहक हो, वह दूसरों के साथ क्या रहम कर सकता है? क़ैद में तड़पते हुए पंछी से, जिसके न बोल हैं न पर, गाने की उम्मीद रखना बेकार है। मैं जानती हूँ कि कल शाम को दिल्ली के ज़ालिम बादशाह के सामने बांदियों की तरह हाथ बांधे खड़ी हूंगी।

 मेरी इज्जत, मेरे रूतबे और मेरी शान का दारोमदार खानदानी इज्जत पर नहीं बल्कि मेरी सूरत पर होगा। नसीब का हक पूरा हा जायेगा। कौन ऐसा आदमी है जो इस जिन्दगी की आरजू रक्खेगा? आह, मुल्तान की शहजादी आज एक जालिम, चालबाज, पापी आदमी की वासना का शिकार बनने पर मजबूर है।

 जाइए, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए। मैं बदनसीब हूँ, ऐसा न हो कि मेरे साथ आपको भी शाही गुस्से का शिकार बनना पड़े। दिल मे कितनी ही बातें है मगर क्यों कहूँ, क्या हासिल? इस भेद का भेद बना रहना ही अच्छा है। आपमें सच्ची बहादुरी और खुद्दारी है।

आप दुनिया में अपना नाम पैदा करेंगे, बड़े-बड़े काम करेगें, खुदा आपके इरादों में बरकत दे–यही इस आफ़प की मारी हुई औरत की दुआ है। मैं सच्चे दिल से कहती हूँ कि मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है। आज मुझे मालूम हुआ  कि मुहब्बत बैर से कितनी पाक होती है।

 वह उस दामन में मुंह छिपाने से भी परहेज नहीं करती जो उसके अजीजों के खून से लिथड़ा हुआ हो। आह, यह कम्बख्त दिल उबला पड़ता है। अपने काल बन्द कर लीजिए, वह अपने आपे में नहीं है, उसकी बातें न सुनिए। सिर्फ़ आपसे यही बिनती है कि इस ग़रीब को भूल न जाइएगा।

 मेरे दिल में उस मीठे सपने की याद हमेशा ताजा रहेगी, हरम की क़ैद में यही सपना दिल को  तसकीन देता  रहेगा, इस सपने को तोड़िए मत। अब खुदा के वास्ते यहां से जाइए, ऐसा न हो कि मसरूर आ जाए, वह एक ज़ालिम है। मुझे अंदेशा है कि उसने आपको धोखा दिया, अजब नहीं कि यहीं कहीं छुपा बैठा हो, उससे होथियार रहिएगा। खुदा हाफ़िज!



Wednesday, 2 January 2019

तमन्ना की कहानियाँ Part 5

January 02, 2019 0
तमन्ना की कहानियाँ Part 5
तमन्ना की कहानियाँ


क़ासिम आध घंटे तक उस रूप की रानी के पैरो के पास सर झुकाये सोचता रहा कि उसे कैसे जगाऊँ। ज्यों ही वह करवट बदलती वह ड़र के मारे थरथरा जाता। वह बहादुरी जिसने मुलतान को जीता था, उसका साथ छोड़े देती थी।

एकाएक कसिम की निगाह एक सुनहरे गुलाबपोश पर पड़ी जो करीब ही एक चौकी पर रखा हुआ था। उसने गुलाबपोश उठा लिया और खड़ा सोचता रहा कि शहज़ादी को जगाऊँ या न जगाऊँ या न जगाउँ? सेने की डली पड़ी हुई देखकर हमं उसके उठाने में आगा-पीछा होता है, वही इस वक्त उसे हो रहा था। आखिरकार उसने कलेजा मजबूत करके शहजादी के  कान्तिमान मुखमंण्डल पर गुलाब के कई छींटे दिये। दीपक मोतियों की लड़ी से सज उठा।

शहज़ादी ने चौंकर आंखें खोलीं और क़ासिम को सामने खड़ा देखकर फौरन मुंह पर नक़ाब खींच लिया और धीरे से बोली-मसरूर।

क़ासिम ने कहा-मसरूर तो यहां नही है, लेकिन मुझे अपना एक अदना जांबाज़ ख़ादिम समझिए। जो हुक्त होगा उसकी तामील में बाल बराबर उज्र न होगा।

शहज़ादी ने नक़ाब और खींच लिया और ख़ेमे के एक कोने में जाकर खड़ी हो गयी।

क़ासिम को अपनी वाक्-शक्ति का आज पहली बार अनुभव हुआ। वह बहुत कम बोलने वाला और गम्भीर आदमी था। अपने हृउय के भावों को प्रकट करने में उसे हमेशा झिझक होती थी लेकिन इस वक्त़ शब्द बारिश की बूंदो की तरह उसकी जबान पर आने लगे। गहरे पानी के बहाव में एक दर्द का स्वर पैदा हो  जाता है। बोला-मैं जानता हूँ कि मेरी यह गुस्ताखी आपकी नाजुक तबियत पर नागवार गुज़री है। 

हुजूर, इसकी जो सजा मुनाशिब समझें उसके लिए यह सर झुका हुआ है। आह, मै ही वह बदनसीब, काले दिल का इंसान हूँ जिसने आपके बुजुर्ग बाप और प्यारे भाईंयों के खून से अपना दामन नापाक किया है। मेरे ही हाथों मुलतान के हजारो जवान मारे गये, सल्तनत तबाह हो गयी, शाही खानदान पर मुसीबत आयी और आपको यह स्याह दिन देखना पडा। लेकिन इस वक्त़ आपका यह मुजरिम आपके सामने हाथ बांधे हाज़िर है। आपके एक इशारे पर वह आपके कदमों पर न्योठावर हो जायेगा और उसकी नापाक जिन्दगी से दुनिया पाक हो जायेगी। मुझे आज मालूम हुआ कि बहादुरी के परदे में वासना आदमी से  कैसे-कैसे पाप करवाती है। 

यह महज लालच की आग है, राख में छिपी हुईं सिर्फ़ एक कातिल जहर है, खुशनुमा शीशे में बन्द! काश मेरी आंखें पहले खुली होतीं तो एक नामवर शाही ख़ानदान यों खाक में न मिल जाता। पर इस मुहब्बत की शमा ने, जो कल शाम को मेरे सीने में रोशन हुई, इस अंधेरे कोने को रोशनी से भर दिया। यह उन रूहानी जज्ब़ात का फैज है, जो कल मेरे दिल में जाग उठे, जिन्होंने मुझे लाजच की कैद से आज़ाद कर दिया।

इसके बाद क़ासिम ने अपनी बेक़रारी और दर्दे दिल और वियोग की पीड़ा का बहुत ही करूण शदों में वर्णन किया, यहां तक कि उसके शब्दों का भण्डार खत्म हो गया। अपना हाल कह सुनाने की लालसा पूरी हो गयी।



Tuesday, 1 January 2019

महिंद्रा-मूमल प्रेम कहानी Part2

January 01, 2019 0
महिंद्रा-मूमल प्रेम कहानी Part2

महिंद्रा-मूमल प्रेम कहानी




महेन्द्रा अमरकोट पहुँच वहां उसका दिन तो किसी तरह कट जाता पर शाम होते ही उसे मूमल ही मूमल नजर आने लगती वह जितना अपने मन को समझाने की कोशिश करता उतनी ही मूमल की यादें और बढ़ जाती । वह तो यही सोचता कि कैसे लोद्र्वे पहुँच कर मूमल से मिला जाय । आखिर उसे सुझा कि अपने ऊँटो के टोले में एसा ऊंट खोजा जाय जो रातों रात लोद्र्वे जाकर सुबह होते ही वापस अमरकोट आ सके ।

उसने अपने रायका रामू (ऊंट चराने वाले) को बुलाकर पूछा तो रामू रायका ने बताया कि उसके टोले में एक चीतल नाम का ऊंट है जो बहुत तेज दौड़ता है और वह उसे आसानी से रात को लोद्र्वे ले जाकर वापस सुबह होने से पहले ला सकता है । फिर क्या था रामू रायका रोज शाम को चीतल ऊंट को सजाकर महेन्द्रा के पास ले आता और महेन्द्रा चीतल पर सवार हो एड लगा लोद्र्वा मूमल के पास जा पहुँचता । तीसरे प्रहार महेन्द्रा फिर चीतल पर चढ़ता और सुबह होने से पहले अमरकोट आ पहुँचता ।

महेन्द्रा विवाहित था उसके सात पत्नियाँ थी । मूमल के पास से वापस आने पर वह सबसे छोटी पत्नी के पास आकर सो जाता इस तरह कोई सात आठ महीनों तक उसकी यही दिनचर्या चलती रही इन महीनों में वह बाकी पत्नियों से तो मिला तक नहीं इसलिए वे सभी सबसे छोटी बहु से ईर्ष्या करनी लगी और एक दिन जाकर इस बात पर उन्होंने अपनी सास से जाकर शिकायत की । सास ने छोटी बहु को समझाया कि बाकी पत्नियों को भी महिंद्रा ब्याह कर लाया है उनका भी उस पर हक़ बनता है इसलिए महिंद्रा को उनके पास जाने से मत रोका कर ।

तब महिंद्रा की छोटी पत्नी ने अपनी सास को बताया कि महिंद्रा तो उसके पास रोज सुबह होने से पहले आता है और आते ही सो जाता है उसे भी उससे बात किये कोई सात आठ महीने हो गए । वह कब कहाँ जाते है,कैसे जाते है,क्यों जाते है मुझे कुछ भी मालूम नहीं ।

छोटी बहु की बाते सुन महिंद्रा की माँ को शक हुवा और उसने यह बात अपनी पति राणा वीसलदे को बताई । चतुर वीसलदे ने छोटी बहु से पूछा कि जब महिंद्रा आता है तो उसमे क्या कुछ ख़ास नजर आता है । छोटी बहु ने बताया कि जब रात के आखिरी प्रहर महिंद्रा आता है तो उसके बाल गीले होते है जिनमे से पानी टपक रहा होता है ।

चतुर वीसलदे ने बहु को हिदायत दी कि आज उसके बालों के नीचे कटोरा रख उसके भीगे बालों से टपके पानी को इक्कठा कर मेरे पास लाना । बहु ने यही किया और कटोरे में एकत्र पानी वीसलदे के सामने हाजिर किया । वीसलदे ने पानी चख कर कहा-  यह तो काक नदी का पानी है इसका मतलब महिंद्रा जरुर मूमल की मेंड़ी में उसके पास जाता होगा ।

महिंद्रा की सातों पत्नियों को तो मूमल का नाम सुनकर जैसे आग लग गयी । उन्होंने आपस में सलाह कर ये पता लगाया कि महेन्द्रा वहां जाता कैसे है । जब उन्हें पता चला कि महेन्द्रा चीतल नाम के ऊंट पर सवार हो मूमल के पास जाता है तो दुसरे दिन उन्होंने चीतल ऊंट के पैर तुड़वा दिए ताकि उसके बिना महिंद्रा मूमल के पास ना जाने पाए ।

रात होते ही जब रामू राइका चीतल लेकर नहीं आया तो महिंद्रा उसके घर गया वहां उसे पता चला कि चीतल के तो उसकी पत्नियों ने पैर तुड़वा दिए है तब उसने रामू से चीतल जैसा दूसरा ऊंट माँगा ।

रामू ने कहा - उसके टोले में एक तेज दौड़ने वाली एक टोरडी (छोटी ऊंटनी) है तो सही पर कम उम्र होने के चलते वह चीतल जैसी सुलझी हुई व अनुभवी नहीं है । आप उसे ले जाये पर ध्यान रहे उसके आगे चाबुक ऊँचा ना करे,चाबुक ऊँचा करते ही वह चमक जाती है और जिधर उसका मुंह होता उधर ही दौड़ना शुरू कर देती है तब उसे रोकना बहुत मुश्किल है ।

महिंद्रा टोरडी पर सवार हो लोद्र्वा के लिए रवाना होने लगा पर मूमल से मिलने की बैचेनी के चलते वह भूल गया कि चाबुक ऊँचा नहीं करना है और चाबुक ऊँचा करते ही टोरडी ने एड लगायी और सरपट भागने लगी अँधेरी रात में महिंद्रा को रास्ता भी नहीं पता चला कि वह कहाँ पहुँच गया थोड़ी देर में महिंद्रा को एक झोंपड़े में दिया जलता नजर आया वहां जाकर उसने उस क्षेत्र के बारे में पूछा तो पता चला कि वह लोद्र्वा की जगह बाढ़मेर पहुँच चूका है ।

 रास्ता पूछ जब महिंद्रा लोद्र्वा पहुंचा तब तक रात का तीसरा प्रहर बीत चूका था । मूमल उसका इंतजार कर सो चुकी थी उसकी मेंड़ी में दिया जल रहा था । उस दिन मूमल की बहन सुमल भी मेंड़ी में आई थी दोनों की बाते करते करते आँख लग गयी थी । सहेलियों के साथ दोनों बहनों ने देर रात तक खेल खेले थे सुमल ने खेल में पुरुषों के कपडे पहन पुरुष का अभिनय किया था । और वह बातें करती करती पुरुष के कपड़ों में ही मूमल के पलंग पर उसके साथ सो गयी ।

महिंद्रा मूमल की मेंड़ी पहुंचा सीढियाँ चढ़ जैसे ही मूमल के कक्ष में घुसा और देखा कि मूमल तो किसी पुरुष के साथ सो रही है । यह दृश्य देखते ही महिंद्रा को तो लगा जैसे उसे एक साथ हजारों बिच्छुओं ने काट खाया हो । उसके हाथ में पकड़ा चाबुक वही गिर पड़ा और वह जिन पैरों से आया था उन्ही से चुपचाप बिना किसी को कुछ कहे वापस अमरकोट लौट आया । 
वह मन ही मन सोचता रहा कि जिस मूमल के लिए मैं प्राण तक न्योछावर करने के लिए तैयार था वह मूमल ऐसी निकली । जिसके लिए मैं कोसों दूर से आया हूँ वह पर पुरुष के साथ सोयी मिलेगी । धिक्कार है ऐसी औरत पर ।

सुबह आँख खुलते ही मूमल की नजर जैसे महिंद्रा के हाथ से छूटे चाबुक पर पड़ी वह समझ गयी कि महेन्द्रा आया था पर शायद किसी बात से नाराज होकर चला गया ।उसके दिमाग में कई कल्पनाएँ आती रही ।

कई दिनों तक मूमल महिंद्रा का इंतजार करती रही कि वो आएगा और जब आएगा तो सारी गलतफहमियां दूर हो जाएँगी । पर महिंद्रा नहीं आया । मूमल उसके वियोग में फीकी पड़ गई उसने श्रंगार करना छोड़ दिया ।खना पीना भी छोड़ दिया उसकी कंचन जैसी काया काली पड़ने लगी । 

उसने महिंद्रा को कई चिट्ठियां लिखी पर महिंद्रा की पत्नियों ने वह चिट्ठियां महिंद्रा तक पहुँचने ही नहीं दी । आखिर मूमल ने एक ढोली (गायक) को बुला महेन्द्रा के पास भेजा । पर उसे भी महिंद्रा से नहीं मिलने दिया गया । पर वह किसी तरह महेन्द्रा के महल के पास पहुँचने में कामयाब हो गया और रात पड़ते ही उस ढोली ने मांढ राग में गाना शुरू किया -
तुम्हारे बिना,सोढा राण, यह धरती धुंधली
तेरी मूमल राणी है उदास
मूमल के बुलावे पर
असल प्रियतम महेन्द्रा अब तो घर आव ।

ढोली के द्वारा गयी मांढ सुनकर भी महिंद्रा का दिल नहीं पसीजा और उसने ढोली को कहला भेजा कि - मूमल से कह देना न तो मैं रूप का लोभी हूँ और न ही वासना का कीड़ा । मैंने अपनी आँखों से उस रात उसका चरित्र देख लिया है जिसके साथ उसकी घनिष्ठता है उसी के साथ रहे । मेरा अब उससे कोई सम्बन्ध नहीं ।

ढोली द्वारा सारी बात सुनकर मूमल के पैरों तले की जमीन ही खिसक गई अब उसे समझ आया कि महेन्द्रा क्यों नहीं आया । मूमल ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे एसा कलंक लगेगा ।
उसने तुरंत अमरकोट जाने के लिए रथ तैयार करवाया ताकि अमरकोट जाकर महिंद्रा से मिल उसका बहम दूर किया जा सके कि वह कलंकिनी नहीं है और उसके सिवाय उसका कोई नहीं ।

अमरकोट में मूमल के आने व मिलने का आग्रह पाकर महिंद्रा महिंद्रा ने सोचा,शायद मूमल पवित्र है ,लगता है मुझे ही कोई ग़लतफ़हमी हो गई । और उसने मूमल को सन्देश भिजवाया कि वह उससे सुबह मिलने आएगा । मूमल को इस सन्देश से आशा बंधी ।
रात को महेन्द्रा ने सोचा कि -देखें,मूमल मुझसे कितना प्यार करती है ?'

सो सुबह उसने अपने नौकर के सिखाकर मूमल के डेरे पर भेजा । नौकर रोता-पीटता मूमल के डेरे पर पहुंचा और कहने लगा कि -महिंद्रा जी को रात में काले नाग ने डस लिया जिससे उनकी मृत्यु हो गयी ।
नौकर के मुंह से इतना सुनते ही मूमल पछाड़ खाकर धरती पर गिर पड़ी और पड़ते ही महिंद्रा के वियोग में उसके प्राण पखेरू उड़ गए ।



महेन्द्रा को जब मूमल की मृत्यु का समाचार मिला तो वह सुनकर उसी वक्त पागल हो गया और सारी उम्र  हाय म्हारी प्यारी मूमल,म्हारी प्यारी मूमल कहता फिरता रहा ।

पहली पुतली रत्नमंजरी की कहानी Part 2

January 01, 2019 0
   पहली पुतली रत्नमंजरी की कहानी    Part 2
   पहली पुतली रत्नमंजरी की कहानी   



अगले दिन जैसे ही राजा भोज ने सिंहासन पर बैठना चाहा तो दूसरी पुतली बोली- जो राजा विक्रमादित्य जैसा गुणी हो, पराक्रमी हो, यशस्वी हो वही बैठ सकता है इस सिंहासन पर।

राजा ने पूछा, 'विक्रमादित्य में क्या गुण थे?'पुतली चित्रलेखा ने कहा, 'सुनो।'

एक बार राजा विक्रमादित्य की इच्छा योग साधने की हुई। अपना राजपाट अपने छोटे भाई भर्तृहरि को सौंपकर अंग में भभूत लगाकर जंगल में चले गए।

उसी जंगल में एक ब्राह्मण तपस्या कर रहा था। देवताओं ने प्रसन्न होकर उस ब्राह्मण को एक फल दिया और कहा, 'जो इसे खा लेगा, वह अमर हो जाएगा। 'ब्राह्मण ने वह फल को अपनी पत्नी को दे दिया। पत्नी ने उससे कहा, 'इसे राजा को दे आओ और बदले में कुछ धन ले आओ
ब्राह्मण ने जाकर वह फल राजा को दे दिया। राजा अपनी रानी को बहुत प्यार करता था। उसने वह फल अपनी रानी का दे दिया। रानी का प्रेम शहर के कोतवाल से था। रानी ने वह फल उसे दे दिया।

कोतवाल एक वेश्या के पास जाया करता था। उसने वह फल वेश्या को दे दिया। वेश्या ने सोचा कि, 'मैं अमर हो जाऊंगी तो भी पाप कर्म करती रहूंगी। अच्छा होगा कि यह फल राजा को दे दूं। वह जिएगें तो लाखों का भला करेगें।' यह सोचकर उसने दरबार में जाकर वह फल राजा को दे दिया।
फल को देखकर राजा चकित रह गए। उन्हें सारा भेद मालूम हुआ तो बड़ा दुख हुआ। उसे दुनिया बेकार लगने लगी। एक दिन वह बिना किसी से कहे-सुने राजघाट छोड़कर घर से निकल गए।

राजा इंद्र को यह मालूम हुआ तो उन्होंने राज्य की रखवाली के लिए एक दूत भेज दिया।
इधर जब राजा विक्रमादित्य की योग-साधना पूरी हुई तो वह लौटे। दूत ने उन्हें रोका। विक्रमादित्य ने उससे पूछा तो उसने सब हाल बता दिया।

विक्रमादित्य ने अपना नाम बताया, फिर भी दूत ने उन्हें न जाने दिया। बोला, 'तुम विक्रमादित्य हो तो पहले मुझसे लड़ो।'
दोनों में लड़ाई हुई। विक्रमादित्य ने उसे पछाड़ दिया।

दूत बोला, 'मुझे छोड़ दो। मैं किसी दिन आपके काम आऊंगा।'
इतना कहकर पुतली बोली, 'राजन्!

क्या आप में इतना पराक्रम है कि इन्द्र के दूत को हरा कर अपना गुलाम बना सको?

पहली पुतली रत्नमंजरी की कहानी Part 1

January 01, 2019 0
   पहली पुतली रत्नमंजरी की कहानी    Part 1
अंबावती में एक राजा राज्य करता था



अंबावती में एक राजा राज्य करता था। वह बड़ा दानी था। उसी राज्य में धर्मसेन नाम का एक और बड़ा राजा हुआ। उसकी चार रानियां थी। एक थी ब्राह्मण, दूसरी क्षत्रिय, तीसरी वैश्य और चौथी शूद्र। ब्राह्मणी से एक पुत्र हुआ, जिसका नाम ब्राह्मणीत रखा गया। क्षत्राणी से तीन बेटे हुए।

एक का नाम शंख, दूसरे का नाम विक्रमादित्य और तीसरे का भर्तृहरि रखा गया। वैश्य से एक लड़का हुआ, जिसका नाम चंद्र रखा गया। शूद्राणी से धन्वन्तारि हुए।

जब वे लड़के बड़े हुए तो ब्राह्मणी का बेटा घर से निकल पड़ा और धारापुर आया। हे राजन्! वहां के राजा तुम्हारे पिता थे। उस लड़के ने राजा को मार डाला और राज्य अपने हाथ में ले करके उज्जैन पहुंचा। संयोग की बात है कि उज्जैन में आते ही वह मर गया। उसके मरने पर क्षत्राणी का बेटा शंख गद्दी पर बैठा। कुछ समय बाद विक्रमादित्य गद्दी पर बैठें।

एक दिन राजा विक्रमादित्य को राजा बाहुबल के बारे में पता चला कि जिस गद्दी पर वह बैठे हैं वह राजा बहाहुबल की कृपा से है। पंडितों ने सलाह दी कि हे राजन्! आपको जग जानता है, लेकिन जब तक राजा बाहुबल आपका राजतिलक नहीं करेगें, तब तक आपका राज्य अचल नहीं होगा। आप उनसे राजतिलक करवाओ।

विक्रमादित्य ने कहा, 'अच्छा।' और वह अपने ज्ञानी और विश्वसनीय साथी लूतवरण को साथ लेकर वहां गए। बाहुबल ने बड़े आदर से उसका स्वागत किया। पांच दिन बीत गए। लूतवरण ने विक्रमादित्य को सलाह दी कि, 'जब आप विदा लेगें तब राजा बाहुबल आपसे कुछ मांगने को कहेगें।

राजा के घर में एक सिंहासन हैं, जिसे साक्षात महादेव ने राजा इन्द्र को दिया था। और बाद में इन्द्र ने बाहुबल को दिया। उस सिंहासन में यह गुण है कि जो उस पर बैठेगा। वह सात द्वीप नवखंड पृथ्वी पर राज करेगा। उसमें बहुत-से जवाहरात जड़े हैं। उसमें सांचे में ढालकर बत्तीस पुतलियां लगाई गई है। हे राजन्! तुम उसी सिंहासन को मांग लेन