बणी-ठणी राजस्थान की मोनालिसा
इस चित्र की सर्वत्र बहुत प्रसंशा हुई और उसके बाद दासी का नाम बणी-ठणी पड़ गया। सब उसे बणी-ठणी के नाम से ही संबोधित करने लगे। चितेरे राजा के अलावा उनके चित्रकार को भी अपनी चित्रकला के हर विषय में राजा की प्रिय दासी बणी-ठणी ही आदर्श मोडल नजर आने लगी और उसने बणी-ठणी के ढेरों चित्र बनाये। जो बहुत प्रसिद्ध हुए और इस तरह किशनगढ़ की चित्रशैली को बणी-ठणी के नाम से ही जाना जाने लगा।
और आज किशनगढ़ कि यह बणी-ठणी चित्रकला शैली पुरे विश्व में प्रसिद्ध है। बणी-ठणी का पहला चित्र तैयार होने का समय संवत 1755-57 है। आज बेशक राजा द्वारा अपनी उस दासी पर आसक्ति व दोनों के बीच प्रेम को लेकर लोग किसी भी तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त करे या विश्लेषण करें पर किशनगढ़ के चित्रकारों को के लिए उन दोनों का प्रेम वरदान सिद्ध हुआ है क्योंकि यह विश्व प्रसिद्ध चित्रशैली भी उसी प्रेम की उपज है और इस चित्रशैली की देश-विदेश में अच्छी मांग है।
किशनगढ़ के अलावा भी राजस्थान के बहुतेरे चित्रकार आज भी इस चित्रकला शैली से अच्छा कमा-खा रहें है यह चित्रकला शैली उनकी आजीविका का अच्छा साधन है।
बणी-ठणी सिर्फ रूप और सौंदर्य की प्रतिमा व राजा की प्रेमिका ही नहीं थी वह एक अच्छी गायिका व कवयित्री थी। उसके इस साहित्यक पक्ष पर प्रकाश डालते हुए राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार सौभाग्य सिंह शेखावत लिखते है-
राजकुलीय परिवारों की राणियों महारानियों की भांति ही राजा महाराजाओं के पासवानों, पड़दायतों और रखैलों में कई नारियाँ अच्छी साहित्यकार हुई है। किशनगढ़ के ख्यातिलब्ध साहित्यकार महाराजा सावंतसिंह की पासवान बनीठनी उत्तम कोटि की कवयित्री और भक्त-हृदया नारी थी।
अपने स्वामी नागरीदास (राजा सावंत सिंह) की भांति ही बनीठनी की कविता भी अति मधुर, हृदय स्पर्शी और कृष्ण-भक्ति अनुराग के सरोवर है। वह अपना काव्य नाम रसिक बिहारी रखती थी। रसिक बिहारी का ब्रज, पंजाबी और राजस्थानी भाषाओँ पर सामान अधिकार था। रसीली आँखों के वर्णन का एक पद उदाहरणार्थ प्रस्तुत है-
रतनारी हो थारी आँखड़ियाँ ।
प्रेम छकी रस बस अलसारणी, जाणी कमाल पांखड़ियाँ ।
सुन्दर रूप लुभाई गति मति हो गई ज्यूँ मधु मांखड़ियाँ।
रसिक बिहारी वारी प्यारी कौन बसि निसि कांखड़ियाँ।।
रसिक प्रिया ने श्रीकृष्ण और राधिका के जन्म, कुञ्ज बिहार, रास-क्रीड़ा, होली, साँझ, हिंडोला, पनघट आदि विविध लीला-प्रसंगों का अपने पदों में वर्णन किया है। कृष्ण राधा लीला वैविध की मार्मिक अभिव्यक्ति पदों में प्रस्फुटित हुई है।
इस चित्र की सर्वत्र बहुत प्रसंशा हुई और उसके बाद दासी का नाम बणी-ठणी पड़ गया। सब उसे बणी-ठणी के नाम से ही संबोधित करने लगे। चितेरे राजा के अलावा उनके चित्रकार को भी अपनी चित्रकला के हर विषय में राजा की प्रिय दासी बणी-ठणी ही आदर्श मोडल नजर आने लगी और उसने बणी-ठणी के ढेरों चित्र बनाये। जो बहुत प्रसिद्ध हुए और इस तरह किशनगढ़ की चित्रशैली को बणी-ठणी के नाम से ही जाना जाने लगा।
और आज किशनगढ़ कि यह बणी-ठणी चित्रकला शैली पुरे विश्व में प्रसिद्ध है। बणी-ठणी का पहला चित्र तैयार होने का समय संवत 1755-57 है। आज बेशक राजा द्वारा अपनी उस दासी पर आसक्ति व दोनों के बीच प्रेम को लेकर लोग किसी भी तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त करे या विश्लेषण करें पर किशनगढ़ के चित्रकारों को के लिए उन दोनों का प्रेम वरदान सिद्ध हुआ है क्योंकि यह विश्व प्रसिद्ध चित्रशैली भी उसी प्रेम की उपज है और इस चित्रशैली की देश-विदेश में अच्छी मांग है।
किशनगढ़ के अलावा भी राजस्थान के बहुतेरे चित्रकार आज भी इस चित्रकला शैली से अच्छा कमा-खा रहें है यह चित्रकला शैली उनकी आजीविका का अच्छा साधन है।
बणी-ठणी सिर्फ रूप और सौंदर्य की प्रतिमा व राजा की प्रेमिका ही नहीं थी वह एक अच्छी गायिका व कवयित्री थी। उसके इस साहित्यक पक्ष पर प्रकाश डालते हुए राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार सौभाग्य सिंह शेखावत लिखते है-
राजकुलीय परिवारों की राणियों महारानियों की भांति ही राजा महाराजाओं के पासवानों, पड़दायतों और रखैलों में कई नारियाँ अच्छी साहित्यकार हुई है। किशनगढ़ के ख्यातिलब्ध साहित्यकार महाराजा सावंतसिंह की पासवान बनीठनी उत्तम कोटि की कवयित्री और भक्त-हृदया नारी थी।
अपने स्वामी नागरीदास (राजा सावंत सिंह) की भांति ही बनीठनी की कविता भी अति मधुर, हृदय स्पर्शी और कृष्ण-भक्ति अनुराग के सरोवर है। वह अपना काव्य नाम रसिक बिहारी रखती थी। रसिक बिहारी का ब्रज, पंजाबी और राजस्थानी भाषाओँ पर सामान अधिकार था। रसीली आँखों के वर्णन का एक पद उदाहरणार्थ प्रस्तुत है-
रतनारी हो थारी आँखड़ियाँ ।
प्रेम छकी रस बस अलसारणी, जाणी कमाल पांखड़ियाँ ।
सुन्दर रूप लुभाई गति मति हो गई ज्यूँ मधु मांखड़ियाँ।
रसिक बिहारी वारी प्यारी कौन बसि निसि कांखड़ियाँ।।
रसिक प्रिया ने श्रीकृष्ण और राधिका के जन्म, कुञ्ज बिहार, रास-क्रीड़ा, होली, साँझ, हिंडोला, पनघट आदि विविध लीला-प्रसंगों का अपने पदों में वर्णन किया है। कृष्ण राधा लीला वैविध की मार्मिक अभिव्यक्ति पदों में प्रस्फुटित हुई है।
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